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मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में चित्रित स्त्री विमर्श

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  "मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में चित्रित स्त्री विमर्श " - डॉ. मनिषा साळुंखे   Maitreyi Pushpa (©amarujala.com) भारतीय समाज में नारी शुरू से ही साहित्य का विषय रही है। हिंदी साहित्य सृजन में विभिन्न लेखिकाओं ने अपना योगदान दिया है। स्वातंत्र्योत्तर कालीन बदलती सामाजिक तथा राजनैतिक स्थितियों ने नारी की चिंतन में अपूर्व परिवर्तन किया। पुरुष प्रधान समाज में नारी की स्थिति को दर्शाने के प्रयास हिंदी कहानियों में विविध लेखिकाओं ने प्रस्तुत किए हैं। आठवें दशक में अनेक महिला लेखिकाओं ने स्त्री विमर्श को अपनी रचनाओं में उभारने का प्रयास किया। उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, चित्रा मुद्गल, कृष्णा सोबती तथा मैत्रेयी पुष्पा की रचनाओं ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है। आज भी समाज में लड़का तथा लड़की में भेदभाव किया जाता है। पुत्र को वंश का कुलदीपक माना जाता है 'पुत्र हुआ ऐसा, जैसा त्रिलोकी झेंडा ऐसा मानने वाला हमारा समाज स्त्री के साथ अन्याय करता है पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत लड़की परिवार का नाम रोशन करती है। वृद्धावस्था में माता-पिता की सेवा सुश्रुषा करती है किंतु लड़का अपनी शादी होने पर अपने ह