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📔 कबीर के दोहे – शब्दकलश Opt -Hindi B.A.I

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  कबीर के दोहे – शब्दकलश Opt -Hindi B.A.I    १ ) साधु सीप समुद्र के , सतगुरु स्वाती बून्द।    तृषा गई एक बून्द से , क्या ले करो समुन्द।। अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं सच्चे साधु लोग सीप के समान होते हैं । जैसे एक सीप सागर के बीच मे रहते हुए भी सिर्फ स्वाती नक्षत्र में गिरी बूंद को ही अपने अंदर ग्रहण करती है , उसे सागर के पानी से कुछ लेना देना नहीं होता । वैसे ही साधु साधु को सीप मानो , वे भी चारों तरफ फैली माया से आकर्षित नहीं होते औऱ सद्गुरु उनके लिए स्वाती बूंद की तरह होते हैं उनकी प्यास सिर्फ सद्गुरु से ही बुझ सकती है , वे उन्ही से संतुष्ट हो सकते हैं । २ ) गुरु कुम्हार शिष कुंभ है , गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट।    अन्तर हाथ सहार दै , बाहर बाहै चोट॥     अर्थ :  गुरु ही शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है , गुरु के अभाव में शिष्य एक माटी का अनगढ़ टुकड़ा ही होता है जिसे गुरु एक घड़े का आकार देते हैं , उसके चरित्र का निर्माण करते हैं। जैसे कुम्भकार घड़ा बनाते वक़्त बाहर से तो चोट मारता है और अंदर से हलके हाथ से उसे सहारा भी देता हैं की कहीं कुम्भ टूट ना जाए , इसी भाँती गुरु भी उसके अवगुण