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महादेवी के काव्य में विरह भाव

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Mahadevi Verma   महादेवी के काव्य में विरह भाव                           प्रा.डॉ. साळुंखे मनिषा नामदेव शोधसार संक्षेप :-  प्रत्येक युग के साहित्य में उस युग की परिस्थितियाँ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप में काम करती रहती है| छायावाद विशेष प्रकार की भाव पद्धति है| छायावादी काव्यचेतना में भारतीय एवं पाश्चात्य प्रवृत्तियों का समन्वित रुप है| पंत, निराला, प्रसाद के पश्चात छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का नाम आदर के साथ लिया जाता है| छायावादी काव्य को संवारने में महादेवी का बहुत बडा हाथ है| ह्रदय अनुभूतियों और सूक्ष्मतम् भावनाओं की अभिव्यक्ति सफलता के साथ महादेवी ने की है| महादेवी के काव्य की विशेषता वेदना है| वे वेदना को अपने प्रियतम की देन समझकर उसका पोषण बडी सावधानी से करती है| विरह वेदना की अग्नि में जितना अधिक जलती है| अपने को उतना अधिक ही वे अपने को प्रियतम के निकट समझती है| दु:खी व्यक्ति का ह्रदय अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण हो जाता है और इसीलिए महादेवी के सारा संसार अपना सा लगता है| इसी दु:ख की वजह से अज्ञान सत्ता की ओर उन्मुख हुई है| इसी सत्ता को उन्होंने प्रियतम के रुप में स्वीकार

हिंदी सामान्यज्ञान परिक्षा

                                                       हिंदी सामान्यज्ञान परिक्षा  सुचना-    1) सभी प्रश्न आवश्यक है।              2) प्रत्येक प्रश्न के लिए दो गुण है। 1. हिंदी दिन _ _ _ _ को मनाया जाता है।       1) 14 सितंबर  2) 14 ऑगस्ट  3) 26 जनवरी  4) 10 जनवरी       2. सुरदास के गुरु _ _ _ _ थे।                                     1) रामानंद  2) नानक  3) दादु दयाल  4) वल्लभाचार्य                     3. मीरा _ _ _ _ कवयित्री है।                                       1) राम  2) श्रीनाथ  3) कष्णभक्त  4) विठ्ठल                           4. हिंदी भारत की _ _ _ _ भाषा है।                                1) बोली  2) परिनिष्ठित  3) राजभाषा  4) मातभाषा                      5. हिंदी साहित्य के इतिहास के _ _ _ _ काल है।                      1) दो  2) चार  3) तीन  4) छह                                    6. छायावाद के प्रमुख स्तंभ _ _ _ _ है।                             1) हरिवंशराय बच्चन  2) महादेवी वर्मा  3) मीरा  4) प्रेमचंद               7. प्रेमचंद का नाम _ _ _ _ है।