शब्द कलश सेमिस्टर २ नोट्स

शब्द कलश -सेमिस्टर 2 B.A.I Opt Hindi
महाजनी सभ्यता- प्रेमचंद 
    महाजनी सभ्यता प्रेमचंद का लिखा एक बहुचर्चित विचारात्मक  निबंध साहित्य हे। पहले यह निबंध महाजनी तहजीब नामक शीर्षक से उर्दू मासिका में प्रसिद्ध हुआ था। इस निबंध के द्वारा प्रेमचंद ने हमारे देश में महाजनी सभ्यता की स्पष्ट रूप से निंदा की है ।महाजनी सभ्यता से जागीरदारी सभ्यता तथा साम्राज्यवाद तथा मार्क्सवाद का प्रेमचंद जी ने गुणगान किया है। प्रेमचंद लिखते है  जागीरदार प्रजा का  पालन करता था और न्याय शील भी होता था उसमें दोष के साथ गुण भी थे।
    महाजनी सभ्यता में सारे कामों की गरज सिर्फ पैसा होती है। महाजनों पूंजी पतियों को ज्यादा से ज्यादा नशा हो इसी दृष्टि से आज दुनिया में महाजनों का राज्य दिखाई देता है और धनी लोगों ने मानव भाव को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है। कुलीनता शराफत गुण कमाल की कसौटी पर पैसा ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जिसके पास पैसा है वह देवता है। साहित्य संगीत और कला धन की देहरी पर माथा टेकने वालों में ही है। डॉक्टर और हकीम बिना इसलिए बात नहीं करते वकील और बैरिस्टर मिनटों के लिए अनेक पैसे तोलते हैं ।पंडित जी पैसे वालों के बिना पैसे के गुलाम है ।
       पैसों की भूख ने आज मानव मानव के बीच भावनात्मक रिश्ते को खत्म कर दिया है। धन ही हमारी सभ्यता और गुणों का मापदंड है।जिसके पास अधिक धन है वह अधिक गुनी और शरीफ कहलाता है। वही सज्जन है व्यक्ति के पास अवगुण कितने भी हो धन अधिक होने पर बैठक जाते हैं ।इसलिए आज दोषी व्यक्ति जेल के बाहर घूम रहा है और निर्दोष व्यक्ति जेल के अंदर है।
       समाचार या मीडिया भी धनी व्यक्तियों का ही गुणगान करते हैं।धन नहीं हो तो संस्कारों को कोई नहीं पूछता इसलिए आज समय को धन माना जाता है।प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य धन कमाना है। किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से लाभ हो तो ही व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलता है जैसे डॉक्टर वकील अध्यापक का समय कीमती है। वह सोच कर बातें करते हैं उनके लिए समय धन है कुछ कमा लेना ही जीवन की सार्थकता है।
      प्रेमचंद की दृष्टि से यह समाज व्यवस्था भावी पीढ़ी के लिए खतरनाक है। कारण महाजनी सभ्यता मानव समाज से मानवता मित्रता प्रेम सहानुभूति ऐसे मानवीय अभाव को दूर ले जा रही है। इसीलिए लेखक कहते हैं धन लिप्सा को इतना ना बढ़ने दिया जाए कि वह मनुष्यता मित्रता स्नेह सहानुभूति सबको निकाल बाहर करें। बिजनेस इन बिजनेस समय की मांग है।

प्रश्न - राजेंद्र श्रीवास्तव लिखित ‘तिरस्कार’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए |

राजेंद्र श्रीवास्तव की तिरस्कार कहानी वृद्ध विमर्श पर आधारित है| इस कहानी की प्रमुख पात्र सावित्री बुआ अपने जवान बेटे राकेश की स्टेशन पर उसे ले जाने के लिए आने की राह देखती रहती है| शादी के पश्चात उसका बेटा न उसे मिलने आता है न ही अपनी माँ को अपने पास बुलाता है | उसे अपने बेटे पर शर्म आने लगती है सारे गांव वाले उसकी निंदा करते हैं कि बेटे ने उसे न शादी में बुलाया न किसी को पत्रिका दी मां को छोड़कर बेटे ने अपनी पसंद के अनुसार शादी कर ली थी तब से उसे बहुत शर्म लग रही थी वह अपने घर में ही छुपी छुपी बैठी रहती किंतु आज पोते के जन्म पर वह सारी बातें पीछे छोड़ देती है और अपने बेटे से मिलने नागपुर शहर को चली जाती है बेटे को तार भेजती है किंतु जब स्टेशन पर राह देखकर भी बेटा राकेश उसे लेने नहीं आता तब उसे लगता है शायद राकेश को तार नहीं मिली होगी नहीं तो अवश्य वह मुझे लेने आता नहीं तो गाड़ी तो भेजता ! ऐसी बाते सोचकर अपने एकमात्र बेटे राकेश की राह देख है|
अपने बेटे बबुआ के जन्मदिन पर उसका बेटे राकेश ने अपनी मॉ को गाव मे एक नामकरण या छटी से संबधित निमंत्रण पत्रिका भेजी है| पत्रिका अंग्रेजी मे है किंतु सावित्री दुसरो से पूछकर उसका अर्थ समझ लेती है | वह अपने बेटे को मिलने के लिए तरसती है | वह अपने पोते को देखने की आस लगाये रहते है| अपनी बहु मिताली और पुत्र राकेश को मिलना चाहती है|बहु मिताली टैक्स डिपार्टमेंट में बड़ी अफसर है | किंतु उसने अपने बेटे को उसकी पत्नी के बारे में उसकी जाति के बारे में पूछा तक नहीं बेटे ने सिर्फ मां को अपनी पसंद के अनुसार एक महाराष्ट्रीयन लडकी मिताली भंडारकर से शादी कर ली है और वह मेरे औफ़िस में काम करती है | यह बात पोस्ट कार्ड द्वारा लिखकर भेजी हुई है पर मां उसे बड़े दिल से क्षमा कर देती है| 
अपने संदूक मे रखी हुई तोले भर सोने की करधनी को अपने पति की मृत्यु के बाद उसने  बचाकर रखी थी वही एक मात्र निशाणी बेचकर बाबुआ के लिये वस्त्र खरीदती है| असली घी में बनाये मोतियों के लड्डू पुरे गॉव में बाँटती है| पुरे गाव मे मिठाईया बाटती है और नागपूर मे शहर जाने की तैयारी करती है |बबुवा के लिए गहने खरीदती है और लोगों को पूछ कर नागपूर का तिकीट निकालती है और ट्रेन से मिलने चली जाती है | क्या अपना बेटा उसे लेने स्टेशन पर आयेगा बहुत देर से वह उसकी राह देखती है पर उसे मिलने तथा लेने के लिए कोई नही आता तो वह  समजती है शायद उसे कोई काम हुआ होगा इसलिये रिक्षा से पता पूछते पुछते वह अपने बेटे के घर पहुच जाती है |
वहां धूमधाम से बेटे का कार्यक्रम चल रहा था| पूरा घर लाइटिंग से सजाया हुआ है एक के बाद एक गाडीयों का ताता बाहर लगा हुआ है |बगीचे में विभिन्न फुल थे मखमली घास थी पानी के फव्वारे के चारो ओर लाल नीली रोशनी थी | हर व्यक्ती पूछकर अंदर जा रहा है उसे लगता है की अपना बेटा कितना बडा हुआ है| अंदर बडे बडे परदे कालीन बिछाये हुये है|वह अंदर जाना चाहती है तब दरबान उसे असंख्य प्रश्न पूछता है आप कौन हो ?कार्ड कहा से मिला ?अंदर किससे मिलना है ?बुआ का दर्द इतने दूर प्रवास करने से बढ़ रहा था| सन्दुक उठाते पीठ में दर्द शुरू हुआ |दरबान व्यक्ती उसे टोकता है उसके हाथ में निमंत्रण पत्र देखकर अपने बडे साहब को वह फोन करता है| तब माँ को लगता है कि इस नौकर को मालूम नही की मै इसके साहब की माँ हु |राकेश से कहकर मै इस नोकर को निकल दु किंतु फिर सोचती है वह तो अपना काम कर रहा है नही तो इतने बढ़े कार्यक्रम में कोई ऐसे ही बिना जान पहचान का आ जाएगा यह तो प्रामाणिक अपना फर्ज कर रहा है | वह इस खयाल में है की उसका अपना बेटा अभी उसे मिलने आ रहा है दरबान व्यक्ती उसे कहता है यही खड़ी रह माँ तुमको लेने आदमी भेज रहे है |घर का नौकर आकर माँ को अंदर पिछले रस्ते से ले जाता है |
इतना बड़ा कार्यक्रम रखा है हम तो घरवाले है राकेश किसे किसे देखेगा ऐसा सोचकर वह अपने मन को समजाती है |वह भीतर गयी राकेश फोन पर गुस्से से अंग्रेजी में डाट रहा था |मिताली बगल में ही खड़ी थी बुआ को देखते ही उसकी त्योरियाँ चढ़ गयी कौन है ?अंदर कैसी आई ?तभी राकेश ने कहा कि ‘ये मेरी माँ है’| मेहमान आ रहे थे उसका बेटा तथा बहु उसे गुस्से से कहते है यहाँ हॉल में आने की क्या जरूरत थी? उसका बेटा कहता है की माँ तुझे इसी वक्त आना था कार्यक्रम होने के पश्चात तुम आती ? तुझे गाव मिलने मै ही आ जाता बच्चा थोड़े ही भागा जा रहा था | मिताली स्पष्ट शब्दों में कहती है की बच्चे को मत छुना तो दूर उसके पास भी जाओ तो उसे इन्फेक्शन हो जाएगा |सावित्री बुआ दिन भर प्रवास करके थक चुकी है उसके हाथ में उसका पुराना संदूक है जिसके बोझ तले वह थक गयी थी | मेहमान के आते ही राकेश ने माँ को कमरे में धक्का देकर धकेल दिया और मिताली ने पर्दे खीच लिये बाहर न आने के लिए कहा |जिस कमरे मे वह रुकी थी वहा बैठने तक जगह भी नही थी वहा खडी रहकर वह उब जाती है |
आखिर कमिश्नर साहब आ जाते है मिताली बडे घर की बेटी है| उसके पिताजी तथा अनेक मंत्री उस कार्यक्रम मे शामिल है |सावित्री बुवा को बेटे तथा बहु के तेवर देख कर सारी बाते समझ मे आ जाती है| उसे बहुत दुख होता है |आखिर खडे रहकर रहकर वह थकी उसने सुबह से कुछ खाया पिया नही था| घर आने पर भी बेटे तथा बहू ने उसे न खाने पीने के लिए पूछा नही उसका आदर सत्कार किया| तभी अकस्मात उसके हाथो से संदूक नीचे गिर जाती है और परदा खीच लिया जाता है और सभी लोगों का ध्यान सामने बुवा पर जाता है सभी लोग पुछते है राकेश साहेब यहा औरत कौन है ?तब राकेश कहता है कि ‘ये मेरी माँ है’ किंतु सावित्री बुवा को इतना गुस्सा आता है कि वह जोर से चिल्लाती है ‘मै इसकी माँ नही हूं और न ही वह मेरा बेटा है’ | मां और बेटे के पवित्र रिश्ते से लेकर उसे शर्म आने लगती है| राकेश में इतनी हिम्मत नही रही कि वह माँ से आखें मिलाकर बात कर सके |सावित्री ने अपना सन्दुक उठाया और लम्बा रास्ता पार कर बाहर जाने लगी |उनकी चाल में हिम्मत थी लड्खडाह्त नही थी |
  लेखक इस कहानी के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि आजकल के बेटे तथा बहू बड़े होने पर अधिक पैसा कमाने पर अपने माँ-बाप को भूल जाते है| उसे अपने माता-पिता की शर्म आने लगती है| वह अपने मां-बाप की इज्जत नहीं करते |उन्हें अपने साथ नही रखते हैं | उनका ख्याल नही करते हैं| आजकल के बच्चों को वर्तमान युग में अपने माता-पिता के प्रति कोई प्रतिष्ठा नहीं रही|इसीलिए आज वृद्ध माता-पिता अपने बच्चों का तिरस्कार करते हैं लेखक राजेंद्र श्रीवास्तव ने दिया हुआ इस कहानी का शीर्षक सही दृष्टि से सार्थ दिखाई देता है|सावित्री बुआ अपने एकमात्र बेटे के लिए पति के देहांत के बाद उसे पाल पोस कर बड़ी करती है उसकी शिक्षा के लिए पूरी जायजाद बेच देती है अपने गहने तो उसके पास नहीं रहे किंतु अपने मृत पति की एकमात्र निशानी करधनी संदूक में बची हुई थी वह बेचकर वह अपने बेटे को बहू को पोते को मिलने इतने दूर अपने गांव से शहर चली जाती है किंतु उसे ऐसा लगता है कि द्वार पर देखते ही बेटा कितना प्रसन्न होगा उसकी बहू मिताली जिसका नाम इतना अच्छा है उसका स्वभाव भी उतना ही अच्छा होगा किंतु उसे ना आदर सत्कार मिलता है नही प्रतिष्ठा| 
  इस कहानी के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि आज समाज में वृद्धाश्रम की आवश्यकता क्यों है ? क्योंकि बेटे अपने माता पिता को बड़े होने पर संभालने के लिए तैयार नहीं होते वह अपने माता-पिता का कष्ट भूल जाते हैं |इसीलिए आज वृद्धआश्रम में वृद्धों की संख्या बढ़ती जा रही है|आज माँ-बाप अपने बच्चे के सो गुनाहों को माफ कर देते हैं किंतु जब यह गुनाह कम नहीं होते तो अवश्य एक दिन अपने बेटे बच्चों का वह तिरस्कार करते हैं और मां-बाप के रिश्ते को ही ठुकराते हैं |माँ-बेटे का पवित्र रिश्ता आज कम होता हुआ में दिखाई दे रहा है |आज स्वार्थी प्रेम में अंधे हुए बच्चे अपने माता-पिता के उपकारों को भूल गए हैं| लेखक आज की नई पीढ़ी को अपने माता-पिता की इज्जत करने के लिए प्रेरित करते हैं |हिंदी साहित्य में विविध विमर्श है उनमें से यह वृद्ध विमर्श हमें अनोखे जीवन दर्शन के और हमे विचार विमर्श करने के लिए प्रेरित करता है|

प्रश्न ‘बस बहुत हो चुका’ कविता में चित्रित ओमप्रकाश वाल्मीकि के दलित विमर्श को स्पष्ट कीजिए |
वर्तमान दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं।हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
वाल्मीकि के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है। उनकी मान्यतानुसार दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। इस आशय की पुष्टि के तौर पर रचित अपनी आत्मकथा जूठन में उन्होंने वंचित वर्ग की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया है
किस तरह लंबे समय से भारतीय समाज-व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर खड़ी ‘चूहड़ा’ जाति का एक बालक ओमप्रकाश सवर्णों से मिली चोटों-कचोटों के बीच परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ दलित आंदोलन का क्रांतिकारी योद्धा ओमप्रकाश वाल्मीकि बनता है। दरअसल, यह दलित चेतना के निर्माण का दहकता हुआ दस्तावेज है।
दलित चेतना गुलामों को उनकी गुलामी का बोध कराती है । दलित साहित्य के लिए दलित चेतना एक महत्वपूर्ण बीज है; यह अन्य लेखकों की चेतना से अलग और अलग है। इस चेतना के कारण दलित साहित्य को अद्वितीय के रूप में सीमांकित किया गया है'।
ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित विमर्श के प्रमुख साहित्यिक है ।उन्होंने  साहित्य के माध्यम से दलितों पर हो रहे अन्याय अत्याचार का स्पष्ट शब्दों में विरोध किया है। दलित एक जाति नहीं है बल्कि पिछड़े हुए वर्ग का प्रतीक है। सदियों से हो रहे दलितों के अन्याय अत्याचार का जीवन कवि ने खुद भुगताया है ।सदियों से पीछड़ी हुई जाती ने अनेक वेदनाओं को सहा हुआ है। 
          आज भी ग्रामीण भाग से लेकर शहरी भागों में भी यह अन्याय अत्याचार पाया जाता है ।आज समाज का हर पिछड़ा हुआ व्यक्ति शिक्षित बनता जा रहा है। आज वह अपने पर किए हुए अन्याय अत्याचार का विरोध करता है ।कवि स्पष्ट शब्दों में दलितों पर हो रहे अन्याय का ‘बस बहुत हो चुका॑  कविता के द्वारा विरोध करते है। भारतीय जीवन में आज भी वर्ण व्यवस्था पाई जाती है ।हर वर्ग के अंतर्गत व्यवस्था बनी हुई है गुलामी करना झाड़ू लगाना कूड़ा करकट इकट्ठा करना यह काम दलितों पर सौंप दिया जाता है ।किंतु आज यह काम यह वर्ग करने के लिए तैयार नहीं है। कवि  खुद दलित थे उन्होंने इस जीवन को खुद भुगताया  है इसलिए वे आज किसी दलितों के हाथ में झाड़ू आदि देखते हैं तो कवि का रक्त खौल उठता है वे स्पष्ट शब्दों में इसका विरोध करते हैं  समाज में निम्न वर्ग पर अन्याय अत्याचार होता है। कवि जब किसी के हाथ में झाड़ू तथा गंदी बाल्टी देखते हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आ जाता है।
समाज में दो प्रकार के वर्ग है एक शोषित और दूसरा शोषक। शोषित वर्ग पर हमेशा अन्याय अत्याचार होता रहता है । समाज की वर्ण व्यवस्था की ओर कवि हमें सचेत करते हैं। गंदे काम करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ एक वर्ग की नहीं है। अब शोषित पर होने वाले अत्याचार को वह नहीं सह सकता । इसीलिए कवि कहते हैं बस्स ! अब बहुत हो चुका अन्याय को सहन करना। अब वक्त आ गया है  की अपने पर हो रहे अन्याय का विरोध करने की, एकजुट होने की, आवाज करने की कितने हज़ार साल बित चुके किंतु कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।आज भी वह दलित अपने पर हो रहे अन्याय को सहते ठंडे रेतकणो का तरह पडे देखने पर कवि की अपनी हथेलियों पसीने से भीग जाती हैं।आँखों में उतर इतिहास का स्याहपन अपनी आत्मघाती कुटिलताओं  साथ।झाड़ू थामे हाथों की सरसराहटसाफ़ सुनाई पड़ती है भीड़ के बीच बियाबान जंगल में सनसनाती हवा की तरह। निरर्थक पड़े पत्थर अब काम नहीं आएंगे गहरी पथरीली नदी में असंग फिर आए कसमसा रही है रोज से मुखर होने के लिए । 

चश्मदीद शहादत
चश्मदीद शहादत का अर्थ है आंखों देखा गवाह।आज भी  गवाह याने की बहुत आंखों देखी गवाही वह  बोल रहा है। ऐसी पुरानी परंपरा हमारे देश में है संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का आंखों देखा हाल सुनाया था। धृतराष्ट्र को प्रेमचंद की यथार्थवादी शैली में पूरे विश्वास के साथ अलग-अलग शैली में एक ही समय पर अनेक घटनाओं का वर्णन किया हुआ था।यह चश्मदीद गवाह ही था ।
  आज दिनदहाड़े कत्ल होता है ।सभी शरीफ लोगों के बीच में घटना घटित होती है ।किंतु शरीफ लोग थाना कचहरी से लेन-देन ना हो ऐसे मौके पर अपनी आंखों को बंद कर जैसे कुछ मालूम ना हो ऐसा कहते हैं
ग्रामीण इलाकों में आज भी जमींदार ब्राह्मण ठाकुर  हरिजन औरतों के रिश्तो की सैकड़ों चाल दिखाई देती है। 1861 से आज तक जितनी भी डकैती आ पड़ी है उसकी एक मंडला गांव वाले डकैती आने के पहले ही रखते थे आग लगाई जाती थी जिससे गांव वाले डाकू को पहचान सके किंतु आज डकैती बहादुर गांव वालों से बिल्कुल डरते नहीं खुलेआम डाका डाल देते हैं।
भरी अदालत में औरतें डाकुओं को पहचान कर बहादुरी से कहती है कि यही वह दुष्ट था जिसने हमारे घर डकैती डाली थी। आज ट्यूबलाइट के उजेड में डाकू आकर डाका डालकर चले जाते है ।घर घर चोरी करके भाग जाते हैं।
  आज कोर्ट में दिनदहाड़े खून होता है भरी अदालत में जज साहब भी खुद शरीफ होने के कारण यह सब नहीं देखते और फिर एक चश्मदीद गवाह ढूंढना पड़ता है ।पुलीस को आंखो देखा सबुत चाहिए।वकील अपने आपको शरीफ समझते हैं सबसे बड़ी सुरक्षा न्याय व्यवस्था में होनी चाहिए किंतु आज सच्चे समाजसेवी कल्लू मल पुत्र लल्लू मल अपने छोटे से जीवन में आंखों देखा हाल सुनने के लिए तैयार रहते हैं।
यदि कोई दरोगा बदकिस्मती से सच बोल रहा हो तो उसे भी झूठ बोलना पड़ता है नहीं तो उसका तबादला कहीं दूर होता है या उसकी तरक्की नहीं होती समाज की दृष्टि से उसकी अपनी कोई प्रगति नहीं होती। उनकी बीवी बच्चों को घर के अंदर बंद किया जाता है। सच वही है जो कानूनी किताबें है अक्सर सच वह नहीं होता जो कानूनी किताब में नहीं होता ।इसीलिए घर की चारों और पर न्यायमूर्ति कहते हैं उन्हें कोई मुकदमा न लिखना पड़े।
चश्मदीद शहादत वे कानूनी किताबों के बाहर सत्य की तरह है शाश्वत है ।कानून बदलने की मांगों के बावजूद भी शाश्वत बनी रहेगी। संसद पत्रकार कानून न्याय प्रक्रिया में यदि परिवर्तन की मांग हम करते हैं किंतु आज इन मांगों में कोई दम नहीं है इस देश में शाश्वत सत्य कभी नहीं बदलता जिस प्रकार संविधान में निषिद्ध होते हुए भी अस्पृश्यता की गौरवशाली परंपरा हमारे देश में  अभी है ।उसी प्रकार कानून की मोटी मोटी किताबों से परे कल्लूमल पुत्र लल्लूमल की चश्मदीद शहादत भी यथार्थ है और शाश्वत है ।विभूति नारायण राय भारत देश की कानून व्यवस्था की ओर तथा पुलिस व्यवस्था की ओर व्यंग के माध्यम से वास्तविक सत्य का वर्णन प्राचीन काल से चली आ रही चश्मदीद शहादत को मनोरंजक ढंग से आज के वर्तमान युग में भी उसी प्रकार चलती आई है उसमें कोई परिवर्तन नहीं है। यह व्यंग्य के माध्यम से स्पष्ट करते हैं।

 प्रश्न पत्थर की बेंच कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए 
'पत्थर की बेंच ' नामक कविता के कवि चन्द्रकान्त देवताले है । वे वर्तमान समाज के कवि है । प्रस्तुत कविता में कवि यह बताना चाहते है कि मनुष्य सार्वजनिक जगहों का नाश कर रहा है ।
  पार्क में जो पत्थर की बेंच है ,उसपर कई तरह के आदमी आकर बैठते है । एक बच्चा रो रहा है और बिस्कुट कुत२ते चुप हो जाता है । थका युवक अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है ।  दुपहर की धूप से बचकर , एक रिटायर्ड बूढ़ा अपने हाथों से आँखें ढाँपक२ सो रहा है । 
प्रेमी -प्रेमिका अपनी ज़िन्दगी के सपने बुन रहा है ।  इस पत्थर की बेंच पर अनेकों की थकान , आँसू , विश्राम , और प्रेम की स्मृतियाँ अंकित है । इस कविता में कवि अपनी आशंका को व्यक्त क२ते  हुए कहते है कि इस पत्थर की बेंच को भी किसी दिन मनुष्य हत्या कर डालेगा I उसे उखाड़ कर ले जायेगा या तोड़ डालेगा I यह इतना पुराना बेच है कि उसमें कौन पहला बैठा होगा , यह भी हमें पता नहीं ।
  इसमें पत्थर की बेंच सार्वजनिक जगहों का प्रतीक है सार्वजनिक जगह सामाजिकता का संगम स्थान है । इसलिए इसका संरक्षण करना चाहिए ।
यह कवितांश गद्य कविता ‘पत्थर की बैंच’ से प्रस्तुत है। ‘पत्थर की बैंच’ समकालीन कविता है। इस कविता के कवि हैं सुप्रसिद्ध समकालीन कवि चद्रकांत देवताले।कवि ने देखा कि पत्थर की बैंच के इतिहास में आँसू, थकान, विश्राम, प्रेम जैसे अनेक मानुषिक विकार अंकित हैं। लेकिन यह सब जाननेवाला कवि आशंकित हो जाता है। यह इसलिए है कि किसी दिन इस पत्थर की बैंच के लिए हत्याओं का सिलसिला शुरु हो सकता है। उसे उखाड़ कर ले जाया सकता है। अथवा तोड़ भी जा सकता है। कवि को यह नहीं मालूम है कि सबसे पहले इस पत्थर की बैंच पर कौन आसीन हुआ होगा? अर्थात कवि डरता है कि इस पत्थर की बैंच के बारे में अधिकार स्थापित करने केलिए कब लड़ाई शुरु हो जायेगी।
कवितांश प्रतीकात्मक है। पत्थर की बैंच सार्वजनिक स्थल का प्रतीक है। उसपर बैठे चार प्रकार के लोग साधारण आमजनता का प्रतीक है। पत्थर की बैंच जैसे सार्वजनिक स्थलों के संरक्षण करने की आवश्यकता की सूचना कवितांश में निहित है। सार्वजनिक स्थलों का संरक्षण करना आवश्यक है, क्योंकि ऐसे स्थल साधारण लोगों के अनियंत्रित संवेदनाओं से भरी हुई है। जाति, धर्म, राजनीति, स्वार्थता आदि के नाम पर और उनकी सस्ती प्रतिस्पर्धा के लिए सार्वजनिक स्थलों का शिकार बनकर उन्हें सत्यनाश न करना चाहिए।
कवितांश गद्यकविता की शैली में है। भाषा सरल और प्रवाहमय है। कवितांश द्वारा कवि के आशय हममें लाने में कवि सफल हुए हैं।

प्रश्न   रहीम के दोहे में चित्रित नैतिक भावो को स्पष्ट कीजिए
   धन्य है मीन की अनन्य भावनाऊँ सदा साथ रहने वाला जल मोह छोडकर उससे विलग हो जाता है, फिर भी मछली अपने प्रिय का परित्याग नहीं करती उससे बिछुडकर तडप-तडपकर अपने प्राण दे देती है
     जिन आँखों में प्रियतम की सुन्दर छबि बस गयी, वहां किसी दूसरी छबि को कैसे ठौर मिल सकता है?
भरी हुई सराय को देखकर पथिक स्वयं वहां से लौट जाता है । ह्यमन-मन्दिर में जिसने भगवान को बसा लिया, वहां से मोहिनी माया, कहीं ठौर न पाकर, उल्टे पांव लौट जाती है।
      क्या किया जाय इस पगली जीभ का, जो न जाने क्या-क्या उल्टी-सीधी बातें स्वर्ग और पाताल तक की बक जाती है खुद तो कहकर मुहँ के अन्दर हो जाती है, और बेचारे सिर को जूतियाँ खानी पडती है
        हाथी नित्य क्यों अपने सिरपर धूल को उछाल-उछालकर रखता है ? जरा पूछो तो उससे उत्तर है:- जिस ह्यश्रीराम के चरणों कीह धूल से गौतम ऋषि की पली अहल्या तर गयी थी, उसे ही गजराज ढूंढता है कि वह कभी तो मिलेगी । 
        कितना ही महत्व का काम करो, यदि किसी के आगे हाथ फैलाया, तो ऊँचे-ऊँचे पद स्वतः छोटा हो जायेगा । विष्णु ने बड़े कौशल से राजा बलि के आगे सारी पृथ्वी को मापकर तीन पग बताया, फिर भी उनका नाम बामन ही रहा । (वामन से बन गया बावन अर्थात् बौना ।) 
      अपनी आबरू रखनी चाहिए , बिना आबरू के सब कुछ बेकार है । बिना आब का मोती बेकार, और बिना आबरू का आदमी कौडी काम का भी नहीं, और इसी प्रकार चूने में से पानी यदि जल गया, तो वह बेकार ही है
       आंसू आंखों में ढुलक कर अन्तर की व्यथा प्रकट कर देते हैं। घर से जिसे निकाल बाहर कर दिया, वह घर का भेद दूसरों से क्यों न कह देगा?
      ऐसे ही राज्य की सराहना करनी चाहिए, जो चन्द्रमा के समान सभी को सुख देने वाला हो। वह राज्य किस काम का, जो सूर्य के समान होता है, जिसमें एक भी तारा देखने में नहीं आता। वह अकेला ही अपने-आप तपता रहता है।
      सरोवर सूख गया, और पक्षी वहाँ से उड़कर दूसरे सरोवर पर जा बसे। पर बिना पंखों की मछलियाँ उसे छोड़ और कहाँ जायें ? उनका जन्म-स्थान और मरण-स्थान तो वह सरोवर ही है।
रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छे स्वभाव का होता है,उसे बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जैसे ज़हरीले साँप चन्दन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई ज़हरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।


भगत सिंह का परिचय - भगत सिंह ने अपनी मृत्यु को सुंदर किस प्रकार बनाया ? 
     भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907, वीरगति: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया।
प्रस्तावना 
      भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र थे। एक सुंदर-सी लड़की आते जाते उन्हें देखकर मुस्कुरा देती थी और सिर्फ भगत सिंह की वजह से वह भी क्रांतिकारी दल के करीब आ गयी। जब असेंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बताकर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौपने से इंकार कर दिया। भगत सिंह के अंतरंग मित्र सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है। इस आरोप से भगत सिंह का हृदय रो उठा और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर देकर अपने नाम करवाया। आठ अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले सम्भवतः 5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के घर में उन्होंने सुखदेव को यह पत्र लिखा था जिसे शिव वर्मा ने उन तक पहुँचाया। यह 13 अप्रैल को सुखदेव के गिरफ़्तारी के वक्त उनके पास से बरामद किया गया और लाहौर षड्यंत्र केस में सबूत के तौर पर पेश किया गया।
पत्र
प्रिय भाई,
जैसे ही यह पत्र तुम्हे मिलेगा, मैं जा चुका होगा-दूर एक मंजिल की तरफ। मैं तुम्हें विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आज बहुत खुश हूं। हमेशा से ज्यादा। मैं यात्रा के लिए तैयार हूं, अनेक-अनेक मधुर स्मृतियों के होते और अपने जीवन की सब खुशियों के होते भी, एक बात जो मेरे मन में चुभ रही थी कि मेरे भाई, मेरे अपने भाई ने मुझे गलत समझा और मुझ पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए- कमजोरी का। आज मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं। पहले से कहीं अधिक। आज मैं महसूस करता हूं कि वह बात कुछ भी नहीं थी, एक गलतफहमी थी। मेरे खुले व्यवहार को मेरा बातूनीपन समझा गया और मेरी आत्मस्वीकृति को मेरी कमजोरी। मैं कमजोर नहीं हूं। अपनों में से किसी से भी कमजोर नहीं।
     भाई! मैं साफ दिल से विदा होऊंगा। क्या तुम भी साफ होगे? यह तुम्हारी बड़ी दयालुता होगी, लेकिन ख्याल रखना कि तुम्हें जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। गंभीरता और शांति से तुम्हें काम को आगे बढ़ाना है, जल्दबाजी में मौका पा लेने का प्रयत्न न करना। जनता के प्रति तुम्हारा कुछ कर्तव्य है, उसे निभाते हुए काम को निरंतर सावधानी से करते रहना।
     सलाह के तौर पर मैं कहना चाहूँगा की शास्त्री मुझे पहले से ज्यादा अच्छे लग रहे हैं। मैं उन्हें मैदान में लाने की कोशिश करूँगा,बशर्ते कीऔर साफ़ साफ़ बात यह है की निश्चित रूप से, एक अँधेरे भविष्य के प्रति समर्पित होने को तैयार हों। उन्हें दूसरे लोगों के साथ मिलने दो और उनके हाव-भाव का अध्यन्न होने दो। यदि वे ठीक भावना से अपना काम करेंगे तो उपयोगी और बहुत मूल्यवान सिद्ध होंगे। लेकिन जल्दी न करना। तुम स्वयं अच्छे निर्णायक होगे। जैसी सुविधा हो, वैसी व्यवस्था करना। आओ भाई, अब हम बहुत खुश हो लें।खुशी के वातावरण में मैं कह सकता हूं कि जिस प्रश्न पर हमारी बहस है, उसमें अपना पक्ष लिए बिना नहीं रह सकता। मैं पूरे जोर से कहता हूं कि मैं आशाओं और आकांक्षाओं से भरपूर हूं और जीवन की आनंदमयी रंगीनियों ओत-प्रोत हूं, पर आवश्यकता के वक्त सब कुछ कुर्बान कर सकता हूं और यही वास्तविक बलिदान है। ये चीजें कभी मनुष्य के रास्ते में रुकावट नहीं बन सकतीं, बशर्ते कि वह मनुष्य हो। निकट भविष्य में ही तुम्हें प्रत्यक्ष प्रमाण मिल जाएगा।
 `` मैं सोचता हूँ,मैंने अपनी स्थिति अब स्पष्ट कर दी है.एक बात मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ की क्रांतिकारी विचारों के होते हुए हम नैतिकता के सम्बन्ध में आर्यसमाजी ढंग की कट्टर धारणा नहीं अपना सकते। हम बढ़-चढ़ कर बात कर सकते हैं और इसे आसानी से छिपा सकते हैं, पर असल जिंदगी में हम झट थर-थर कांपना शुरू कर देते हैं।
मैं तुम्हे कहूँगा की यह छोड़ दो। क्या मैं अपने मन में बिना किसी गलत अंदाज के गहरी नम्रता के साथ निवेदन कर सकता हूँ की तुममे जो अति आदर्शवाद है, उसे जरा कम कर दो। और उनकी तरह से तीखे न रहो, जो पीछे रहेंगे और मेरे जैसी बिमारी का शिकार होंगे। उनकी भर्त्सना कर उनके दुखों-तकलीफों को न बढ़ाना। उन्हें तुम्हारी सहानभूति की आवशयकता है।
क्या मैं यह आशा कर सकता हूं कि किसी खास व्यक्ति से द्वेष रखे बिना तुम उनके साथ हमदर्दी करोगे, जिन्हें इसकी सबसे अधिक जरूरत है? लेकिन तुम तब तक इन बातों को नहीं समझ सकते जब तक तुम स्वयं उस चीज का शिकार न बनो। मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं? मैं बिल्कुल स्पष्ट होना चाहता था। मैंने अपना दिल साफ कर दिया है।
  तुम्हारी हर सफलता और प्रसन्न जीवन की कामना सहित,
तुम्हारा भाई,
भगत सिंह

लघुत्तरी प्रश्न 

प्रश्न 1 अनुवाद किसे कहा जाता है? अनुवाद का उत्पत्ति मुलक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
 परिभाषा - एक भाषा में कही हुई बात का दूसरी भाषा में रूपांतरण करना अनुवाद है। अनुवाद का उत्पत्ति मुलक अर्थ अनु + वाद = अनुवाद इसका अर्थ है पुन: कथन|किसी के कहने के बाद कहना अनुवाद को अंग्रेजी में ट्रांसलेशन कहते हैं।

प्रश्न 2 अनुवाद के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए
अनुवाद याने पून: कथन है दोहराना फिर से कहना याने अनुवाद है। अनुवाद के प्रमुख तीन प्रकार है शब्दावाद भावानुवाद रूपांतर अनुवाद ।

प्रश्न 3 वार्ता लेखन किसे कहते हैं !उसके आवश्यक तत्व लिखिए‌
 वार्ता याने खबर । रेडियो वार्ता का अर्थ है किसी विषय का जानकार श्रोताओं से बातचीत की शैली में उस विषय की जानकारी दें। वार्ता लेखन के लिए तीन प्रमुख आवश्यक तत्व है १ आकर्षक आरंभ २ बोलचाल की भाषा और ३ सतत प्रवाह।

प्रश्न4 साक्षात्कार किसे कहा जाता है?साक्षात्कार लेखन के प्रमुख चरणों को स्पष्ट कीजिए ।
 साक्षात्कार याने इंटरव्यू या मुलाखत या वार्तालाप यह पत्रकारिता से संबंधित विधा है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व तथा कृतित्व के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करना भेंटवार्ता तथा साक्षात्कार है। साक्षात्कार के प्रमुख चरण है -१ व्यक्ति का चयन २ विषय का चयन ३  योजना का निर्माण ४  भेंटवार्ता  ५ बिंदु अंकन ६ प्रस्तुतीकरण आदि

प्रश्न 5 काल किसे कहा जाता है उसके प्रमुख प्रकारों को स्पष्ट कीजिए
घटना कब घटी ?कब घटती है? कब घटेगी? यह क्रिया द्वारा सूचित किया जाता है। इस सूचना को ही क्रिया का काल कहते हैं। क्रिया के ही रूप का दूसरा नाम काल है। प्रमुख तीन काल है वर्तमान काल भूतकाल और भविष्य काल 
राम आता है (वर्तमान काल )
राम आया (भूतकाल) 
राम आएगा (भविष्यकाल)

प्रश्न 6 वचन किसे कहते हैं वचन के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए 
संज्ञा या अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप से एक किया या एक से अधिक वस्तुओं का बोध होता है उन्हें वचन कहते हैं ।हिंदी में दो वचन है एकवचन और बहुवचन।
  एकवचन, विकारी शब्द के जिस रूप से एक पदार्थ या व्यक्ति का बोध होता है उसे एकवचन कहते हैं। उदाहरणार्थ टोपी घोड़ा बहन जाति आदि
  बहुवचन विकारी शब्द के जिस रूप से एक से अधिक पदार्थों या व्यक्तियों का बोध होता है उसे बहुवचन कहते हैं। उदाहरणार्थ टोपियां बातें बहनें जातियां आदि।

प्रश्न 7 लिंग किसे कहते हैं ॽलिंग के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए  ।
  लिंग का अर्थ है चिन्ह। जिससे किसी चीज को पहचाना जाए उसे लिंग कहते हैं। हिंदी में दो लिंग है। पुलिंग और स्त्रीलिंग जिन शब्दों के द्वारा किसी प्राणी अथवा वस्तु का बोध हो उसे लिंग करते हैं।
 जो शब्द पुरुष जाति का बोध कराते हैं उसे पुल्लिंग कहते हैं उदाहरणार्थ कृष्ण बैल पुत्र आदि
जो शब्द स्त्री जाति का बोध कराते हैं उसे स्त्रीलिंग कहा जाता है। उदाहरणार्थ राधा उर्मिला गाय पुत्री आदि।

प्रश्न 8 रहीम ने पानी की रक्षा करने के लिए क्यों कहा है ॽ 
प्रस्तुत दोहे में रहीम कहते हैं मनुष्य ने हमेशा पानी की रक्षा करनी चाहिए ‌बिना पानी के सब सुना है न मनुष्य की इज्जत बनी रहती है न शिंपला में मोती तैयार होता है ना ही चुना पावडर में पानी ना डाला जाए तो वह निष्काम बनी रहती है ।मनुष्य चूना पावडर तथा मोती के लिए पानी की आवश्यकता है।
 
प्रश्न 9 रेडियो रूपक किसे कहा जाता है उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए ॽ
      रेडियो रूपक याने नाटक आता है पर वह नाटक नहीं है दृश्य जगत के रूप में वाचन और संभाषण कला संगीत और कलात्मक प्रस्तुति ध्वनि प्रभाव का ऐसा चित्र उपस्थित किया जाता है जिससे श्रोता के रुदय में वह सा माता चला जाता है इसके संवाद सार्थक होते हैं उसे रेडियो रूपक कहा जाता है नाटक मंच पर देखा जाता है उसे रेडियो सेट पर सुना जाने लगता है ध्वनि प्रभाव स्वर संगीत और प्रसारण रेडियो रूपक में महत्वपूर्ण है भारतीय नाट्य परंपरा में भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में 10 रूपकों का उल्लेख किया था उनमें से अलग रेडियो रूपक है
        भारत विशाल बहू धर्मी बहुभाषी देश है विविधता में एकता इसकी विशेषता है इसमें साहित्य संगीत और कला का महत्वपूर्ण योगदान है रेडियो ने इन तीनों को अपने अनुरूप डालकर भारत के सामाजिक जीवन में सकारात्मक बदल किया है ।



प्रश्न 10 महात्मा गांधी जी के साथ कौन सी घटना घटी और क्यों ॽ
            तीसरा रुपक महात्मा गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका में घटी घटना को व्यक्त करता है वर्ण वेद की समस्या को इस रूप में व्यक्त किया गया है इस घटना के बाद महात्मा गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ आवाज उठाई व्यापक संघर्ष किया अंग्रेजों के विरुद्ध वे लड़े भारत में एकता सहिष्णुता सद्भाव अस्तित्व आदि को बनाए रखने की कोशिश की इस प्रसंग में गांधीजी ट्रेन से फर्स्ट क्लास के डिब्बे से प्रवास कर रहे थे पर उनका रंग देखकर एक अंग्रेजी आदमी ने उन्हें ट्रेन से बाहर जाने के लिए कहा था। उनका सामान बाहर फेंक दिया था और उन्हें बाहर धकेलने की कोशिश की थी।
 
प्रश्न 11 गंगा प्रदूषण पर आधारित रूपक को स्पष्ट कीजिएॽ
         भारत की संस्कृति की पहचान यह रूपक है ॔प्रतीक्षा है एक भगीरथ की ॓ इस रूपक में गंगा नदी के प्रदूषण का वर्णन किया हुआ है। जिस गंगा को हम पवित्र मानते हैं जिससे व्यक्ति सब पापों से मुक्त होता है ऐसी हमारी धारणा है जो जीवन में प्राण भर्ती है। अमृत कुंभ निर्माण करती है। जिससे मनुष्य अमर बन जाता है। जो जीवन को निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। पृथ्वी का पाप धोते-धोते गंगा सोया अभिशप्त उसकी त्याग ममता और प्रेम का मानव लोग कैसा बलिदान दे रहे हैं।भगीरथ के जन्म से ही भगीरथ के जन्म से ही गंगा की निर्मिती थी और पृथ्वी तल पर अन्य दूसरे भगीरथ को ही जन्म लेना पड़ेगा जिससे गंगा का प्रदूषण दूर होगा पर्यावरण पर आधारित यह रेडियो रूपक है।

प्रश्न 12 बुंदेलखंड की वीरता का वर्णन कीजिएॽ
          चीर चेतन बुंदेलखंड का एक अंश है जिसमें रानी लक्ष्मीबाई झांसी के लिए अपना बलिदान दे चुकी है ।जिसमें महाराजा मदन सिंह बखत बली आदिश्वर वीरों को पाल पोस वीरता का इतिहास इसमें लिखा है। भगत सिंह की क्रीडा स्थली बना यह बुंदेलखंड आज भी इतिहास का शाश्वत सत्य वीरों का कथ्य और उनका त्याग हमारे सामने व्यक्त करता है।

प्रश्न 13 सुनीता जैन ने पानी कविता में कौंनसी समस्या को व्यक्त किया है ?
आज सभी जगहों में पानी की समस्या पायी जाती है |कारपोरेशन के नलों में पानी का समय निश्चित नही होता रात दो बजे से उपर पानी सनसनाने लगता है |रात में गहरी नीद में सोई हुई गृहणिया जाग जाती है और पानी भरने नलको पर चली जाती है |कल दिन भर बाल्टिया भरी जा रही है |पानी के अकाल की समस्या का शहरी चित्र अंकित किया हुआ है |दिन रात पानी के लिए स्त्रियाँ चितित रहती है | 


प्रश्न 14 निर्मला पुतुल ने आदिवासी स्त्रियों की व्यथा को किस प्रकार स्पष्ट किया है ?
निर्मला पुतुल ने आदिवासी,ग्रामीण,दलित,आदिम जनजाति महिलाओं के लिए विशेष कार्य किया |आदिवासी विमर्श पर लिखी यह कविता है |आदिवासी स्त्रियों की दुनिया बहुत सिमित होती है |उनकी अपनी दुनिया जैसी अनेक दुनियाए शामिल है इस जगत में यह पता उन्हें नही होता |दिल्ली में उनकी समस्याएं तथा तस्वीरे कैसी पहुच जाती है यह उन्हें पता नही होता |सरकार की अनेक योजनाए इन तक नही पहुचती उनतक आने से पहले ही सुख जाती है आखिर ये अपना दम तोड़ देती है | 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न  
1 पत्थर की बेंच के कवि कौन है ?
चन्द्रकान्त देवताले
2 बच्चा क्या कर रहा है ?
रोता हुआ बच्चा बिस्कुट कुत२ते चुप हो जाता है ।
3 कुचले हुए सपनों को कौन सहला रहा है ?
थका युवक
4 रिटायर्ड बूढ़ा क्या कर रहा है ?
हाथों से आँखें ढाँप सो रहा है ।
5 प्रेमी- प्रेमिका क्या कर रहा है ?
ज़िन्दगी के सपने बुन रहा है।
6 पत्थर की बेंच किसका प्रतीक है?
सार्वजनिक जगहों का
7 पत्थर की बेंच पर कौन-कौन बैठे है ? उनकी संवेदनाएँ क्या क्या है  ?
पत्थर की बेंच पर रोता हुआ बच्चा बिस्कुट कुतरते चुप हो जाता है । थका युवक कुचले हुए सपनों को सहला रहा है। रिटायर्ड बूढ़ा हाथों से आँखें ढाँप सो २हा है । प्रेमी -प्रेमिका ज़िन्दगी के सपने बुन २हा है।
8 सबों ने पत्थर की बेंच का सहारा लिया - क्यों ?
पत्थर की बेंच पर बैठक२ खुली हवा लगने से सबकी थकान दूर हो जाता है और मन का बोझ भी कम हो जाता है।
9 कवि की आशंका क्या है ?
कवि की आशंका यह है कि इस पत्थर की बेंच को भी एक दिन  मनुष्य हत्या कर डालेगा । उसे उखाड़कर ले जायेगा या तोड़ डालेगा I
10 प्रस्तुत कविता का सन्देश क्या है ?
सार्वजनिक जगह सामाजिकता का संगम स्थान है। इसलिए इसका संरक्षण करना चाहिए ।
11 महाजनी सभ्यता कैसी विधा है ? (निबंध )
12 साक्षात्कार को अंग्रेजी में क्या कहते है ?(इंटरव्यू)
13 अनुवाद को अंग्रेजी में क्या कहते है ?(ट्रांसलेशन )
14 तिरस्कार कहानी का प्रमुख पुरुष पात्र कौन है?(राकेश) 
15 चश्मदीद शहादत का अर्थ क्या है |( आखों देखी गवाही)  
16 किसी व्यक्ति से समाचार पत्र में प्रकाशन हेतु वार्ता द्वारा जानकारी एकत्र करना क्या है |( साक्षात्कार)  
17 ‘मैंने आम खाया|’ प्रस्तुत वाक्य का काल फह्चानो |(भूतकाल)
18 एक भाषा में कही बात को दूसरी भाषा में कहना क्या कहलाता है| (अनुवाद)
19 ओमप्रकाश वाल्मीकि का ‘सदियों का संताप’ किस पर लिखा कवितासंग्रह है|(दलित विमर्श) बस बहुत हो चूका कविता इस से ली गयी है |
20 निर्मला पुतुल का जन्म संथाल परगना में हुआ उन्होंने किन स्त्रियों की समस्याओं का वर्णन किया हुआ है | (आदिवासी)
21 प्रेमचंद का जन्म लमही नामक गाव में हुआ | 
22 चश्मदीद शहादत विभूति नारायण राय की किस प्रकार की विधा है |(व्यंग साहित्य) 
23 हिंदी में कितने लिंग है ?(दो )स्र्त्रीलिग़ और पुल्लिग़ 
24 हिंदी में कितने वचन है ?(दो )एकवचन और बहुवचन 
25 भगतसिह का लिखा पत्र किसके नाम लिखा हुआ है ?(सुखदेव )
26 भगतसिह का जन्म २७ सिंतबर १९०७ में कहा हुआ?(बंगा में जो अब पाकिस्तान में है)
27 भगतसिह को 23 मार्च १९३१ की श्याम ७ बजे कौनसे जेल में फ़ासी की सजा सुनायी गयी ?(लाहौर )
28 प्रेमचंद का वास्तविक नाम क्या था ?(धनपतरॉय )
29 साक्षात्कार पत्रकारिता की एक नूतन शैली है |
30 पानी कविता के कवि कौन है ?(सुनीता जैन )
31 डॉ सुनील केशव देवधर ने रेडिओ रूपक और राष्ट्रिय एकता लेख लिखा |
32 आचार्य भरतमुनि का नाट्य शास्त्र ग्रंथ लिखा |
33 कवि रहीम (नीतिवादी) कवि है उनका नाम (अब्दुल रहीम खानखाना) है |
34 रहीम (बादशाह अकबर) के संरक्षक (बैरम खां) के पुत्र थे | 

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