अभी न होगा मेरा अंत ~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
अभी न होगा मेरा अंत
~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
सार: इस कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने प्रकृति का बहुत ही सुंदर और अद्भुत वर्णन किया है। इस कविता में उन्होंने प्रकृति की मदद से मानव के मन की भावनाओं को दर्शाया है।
कविता में कवि निराला जी कह रहे हैं कि अभी तो उनके वसंत रूपी यौवन की शुरुआत ही हुई है, अभी उनका अंत नहीं होने वाला। प्रकृति के बारे में बताते हुए कवि कहते हैं कि हर तरफ हरियाली छायी है और पौधों पर खिली कलियां अभी तक सोई हुई हैं। कलियों के इशारे से यहां वो दुखी और परेशान लोगों की बात कर रहे हैं।
आगे कवि निराला जी कहते हैं कि वो सूरज को आसमान में ले आएंगे और इन सोई कलियों को जगाएंगे। अर्थात वो निराश और परेशान लोगों के ज़िंदगी को खुशियों और सुखों से भर देना चाहते हैं। इसके लिए वो अपनी खुशी और सुखों का दान करने हेतु भी तैयार हैं। कवि चाहते हैं कि दुनिया का हर इंसान सुखी रहे। इसीलिए इस कविता में वे कहते हैं कि जब तक वो हर इंसान का दुख और पीड़ा दूर नहीं कर देंगे, तब तक उनका अंत नहीं होगा।
अभी न होगा मेरा अंतअभी-अभी ही तो आया हैमेरे मन में मृदुल वसंतअभी न होगा मेरा अंत
कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी 'अभी न होगा मेरा अंत' कविता की इन पंक्तियों में कह रहे हैं कि उनका अंत अभी नहीं होगा। उनके जीवन में वसंत रूपी यौवन अभी-अभी ही तो आया है। इन पंक्तियों में कवि छिपे हुए तरीके से कह रहे हैं कि उनका मन जोश और उत्साह से भरा हुआ है। जब तक वो अपने लक्ष्य को पा नहीं लेते, वो हार नहीं मानेंगे।
हरे-हरे ये पात,डालियाँ, कलियाँ, कोमल गात।मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-करफेरूंगा निद्रित कलियों परजगा एक प्रत्यूष मनोहर।
इन पंक्तियों में कवि ने हारे हुए और निराश लोगों को सोई हुई कलियाँ कहा है। जिस प्रकार सूरज के आ जाने से सभी पेड़-पौधों और कलियों में जान आ जाती है, ठीक उसी प्रकार निराला जी अपने प्रेरणा रूपी सूर्य से निराश लोगों के मन में उत्साह और उल्लास भरना चाहते हैं। इस तरह कविता में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी जी जीवन से हार मान चुके लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं।
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस लालसा खींच लूँगा मैं।अपने नव जीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं।
कविता का भावार्थ इस कविता की इन पंक्तियों में कवि वसंत रूपी उम्मीद बनकर, सोये-अलसाए फूलों रूपी उदास लोगों से आलस और उदासी बाहर निकाल लेने की बात कर रहे हैं। वो इन सभी लोगों को नया जीवन देना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने कहा है कि मैं हर पुष्प से आलस व उदासी खींचकर, उसमें नए जीवन का अमृत भर दूँगा।
द्वार दिखा दूंगा फिर उनकोहैं वे मेरे जहाँ अनंतअभी न होगा मेरा अंत।
इस कविता की इन पंक्तियों में कवि निराला जी कहते हैं कि मैं सोये हुए फूलों यानि निराश लोगों को जीवन जीने की कला सिखा दूँगा। फिर, वो कभी उदास नहीं होंगे और अपना जीवन सुख से व्यतीत कर पाएंगे।
कवि का मानना है कि अगर युवा पीढ़ी परिश्रम करेगी, तो उसे मनचाहा लक्ष्य मिलेगा और इस आनंद का कभी अंत नहीं होगा। इस प्रकार, कवि कहते हैं कि जब तक वो थके-हारे लोगों और युवा पीढ़ी को सही राह नहीं दिखा देंगे, तब तक उनका अंत होना असंभव है।
'हरे-हरे', 'पुष्प-पुष्प' में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के 'हरे-हरे ये पात' वाक्यांश में 'हरे-हरे' शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ 'पात' शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है।
1 अभी न होगा मेरा अंत का क्या अर्थ है?
कवि प्रकृति के चित्रण के द्वारा युवा पीढ़ी को समझाना और जागृत चाहते है कि वह अपने आलस को छोड़े और नए उत्साह, साहस और जोश के साथ जीवन का आंनद ले। प्रकृति में फूलों की भरमार है और उनकी सुन्दरता और खुशबु चारों तरफ फैली हुई है। अभी इस समय का अन्त नहीं होगा।
2 'अभी न होगा मेरा अंत' कवि ने ऐसा क्यों कहा?
'अभी न होगा मेरा अंत' कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि वे बताना चाहते हैं कि अभी अंत नहीं होने वाला है। अभी अभी तो वसंत का आगमन हुआ है जिससे उसका जीवन खुशियों से भर गया है। वह उमंग से भरा हुआ है।
3 कविता में कवि के 'अभी न होगा मेरा अंत' कहने का क्या भाव है
'अभी न होगा मेरा अंत' पंक्ति के माध्यम से कवि ने जीवन के प्रति अपना आशावाद प्रकट किया है | वसंत के आगमन पर निराशा का अंत हो जाता है तथा चतुर्दिक विकास तथा नवनिर्माण दिखाई देता है ।
4 कविता के अनुसार अभी अभी ही क्या आया है?
ध्वनि कविता में कवि कहता है कि प्रकृति में वसंत ऋतु का आगमन होने से अभी प्राकृतिक सुंदरता नष्ट नहीं होगी। प्राकृति कहती है कि उसके जीवन में सुंदर कोमल वसंत ऋतु का अभी-अभी ही तो आगमन हुआ है। वसंत के आने से चारों तरफ वन-उपवन में सुंदरता ही सुंदरता फैल गई है।
5 इस कविता में क्या संदेश दिया गया है?
इस कविता से हमें क्या संदेश मिलता है? इस कविता से हमें यह संदेश मिलता है कि जिस प्रकार वसंत ऋतु के आगमन से सारी सृष्टि खिलकर मनमोहक बन जाती है उसी प्रकार हमें भी अपने श्रेष्ठ कार्यो से समाज, राष्ट्र व विश्व की आभामय बनाना चाहिए। एस कार्य करने चाहिए कि सभी हमारा यशगान करें।
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