जनसंचार माध्यम और हिंदी - डॉ. मनिषा साळुंखे
जनसंचार माध्यम और हिंदी
डॉ. मनिषा साळुंखे
राजभाषा के रूप में हिंदी की प्रतिष्ठा एवं रास्ट्रव्यापी प्रसारके पश्चात तकनकी ,जनसंचार और राजकीय प्रयोजनो में हिंदी के प्रयोग आनिवार्यता होने पर नए संसाधनो, विज्ञापन और कम्पुटर के विस्तार से भाषा के समरूप और सामाजिक प्रयोग पर विशेष ध्यान दिया गया l जनसंचार (Mass communication) से तात्पर्य उन सभी साधनों के अध्ययन एवं विश्लेषण से है जो एक साथ बहुत बड़ी जनसंख्या के साथ संचार सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होते हैं।उदा. समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, चलचित्र आकाशवाणी ,दूरदर्शन ,संगणक आदि साधन इलेक्ट्रोनिक माध्यम हैl इन संपर्क माध्यमो ने जानकारी के क्षेत्र में क्रांति पैदा की है l दुनिया के किसी भी कोने में कोई घटना घटित होती है ,तो क्षणार्ध में मालूम होती है l रेडिओ तथा दूरदर्शन के माध्यम से तो हम चोबीसो घंटे दुनिया के निकट रह सकते है l
प्रस्तुत शोध निबंध निम्न उद्देश से लिखा हुआ है -
१) जनसंचार माध्यम के प्रकारों को जनना
२) जनसंचार माध्यम का समाज से क्या संबध है ?
३) जनसंचार माध्यम की भूमिका को जाननाl
४) जनसंचार माध्यम का आधुनिक युग में निर्माण हुए स्थान को जानना l
प्रस्तावना -
जनसंचार का अर्थ है सूचना और विचारों का प्रसार व संचार के आधुनिक साधनों के जरिए मनोरंजन प्रदान करना | जनसंचार के इन माध्यमों में इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया दोनों ही आते हैं | संचार के परम्परागत साधन आधुनिक समाज की परिवर्तित परिस्थितियों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असमर्थ रहे हैं | इसीलिए तीव्र गति से सूचना सम्प्रेषण का कार्य सम्पन्न करने हेतु संचार के नये-नये माध्यमों की खोज होती रही है । आधुनिक मीडिया में रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, अखबार और विज्ञापन अन्य नये- नये माध्यम भी आज सामने आ रहे हैंl जो समाचार एवं विज्ञापन दोनो के प्रसारण के लिये प्रयुक्त होते हैं। मुद्रण ,श्रव्य ,दृश्य ,तथा नव इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अतिरिक्त कुछ महत्वपूर्ण जनसंचार माध्यम हैl
टेलीग्राफ -
यह आधुनिक दुरसंचार का माध्यम है l टेलीग्राफ में संदेश भेजने के लिए बिंदु डॉट प्रणाली का प्रयोग होता है जो की मोस कोड के नाम से जानी जाती है l संदेश प्रषित करने के लिए टेलीग्राफ में एक कुंजी पटल की बोर्ड लगा रहता है l यह एक प्रकार का स्विच है l इस कुंजी का संबंध तारों द्वारा संदेश प्रेणस्थल पर लगे मोर्स कुंजी पटल से होता है l जब मोर्स की चाबी को दबाकर तुंरत छोड़ दिया जाता है तो एक बिंदु बन जाती है ,रिसीवर पर एक क्लिक की आवाज सुनाइ पड़ता है l
मैगजीन
अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने के उद्देश्य से समाचार पत्र भी हर वर्ग के लिए उनकी रूचियों के अनुरूप सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं । खेल, फिल्म, कला, बाजार भाव, राजनैतिक, उठा-पटक, जीवन के हर क्षेत्र से सम्बन्धित समाचार समाचारपत्रों के द्वारा प्रदान किए जाते हैं।
समाचारपत्रों में प्रकाशित विज्ञापन भी संचार का अंग है जो विभिन्न उत्पादों से सम्बंिधंत जानकारियां देते हैं । सामाजिक विज्ञापन घातक रोगों से बचाव, सामाजिक प्रदुषणों के परिहार और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का भी सन्देश देते हैं । जैसे एड्स से बचाव, टीकाकरण और स्वच्छ पेयजल को अपनाने की प्रेरणा । धूम्रपान, नशीली दवाइयों के सेवन को त्यागने की मंत्रणा सामाजिक विज्ञापनों के उदाहरण हैं।
जनमत की सशक्तता, सांस्कृतिक चेतना, मूल्यों को स्थापित करने में समाचार पत्र सहायक हुए हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में समाचार पत्रों का विशेष योगदान स्मरणीय है। समाज सुधार का हर आन्दोलन समाचार पत्रों को अपना प्रवक्ता बनाता है ।
जनसंपर्क मैगज़ीन संगठनों, सरकारी एजेंसियों, शैक्षणिक संस्थानों और दूसरे संगठनों के लिए होती है जो कि कर्मचारियों, उपभोक्ताओं, ओपिनियन लीडर के लिए जानकारी लिये होती है ।
शैक्षिक और शोधकर्ता जरनल जानकारी और ज्ञान को फैलाने के लिए होती है। इन मैगजीनों में विज्ञापन नहीं होते हैं ।
मैगज़ीन, मीडिया ग्रुप, प्रकाशन संस्था, समाचारपत्रों, छोटी संस्थाओं, संगठनों, व्यापारिक संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों और धार्मिक संगठनों द्वारा छापी जाती है । मैगज़ीन सरकारी विभागों व राजनैतिक पार्टियों द्वारा भी छापी जाती है । मैगज़ीन मुख्यत: साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक छपती है । यह चार महीने बाद व छ: महीने बाद भी छपती है । कुछ मैगज़ीन साल में एक बार छपती हैं। मैगज़ीन को तीन भागों में बांटा जा सकता है । समाचार प्रधान, मनोरंजन प्रधान, स्वयं विचारधारा प्रधान । आज प्रत्येक मैगज़ीन अपने लक्षित पाठकों के इच्छित अनुसार होती है ।
शुरूआत में, जब वैज्ञानिक अस्तित्व में आई उसे अपना स्थान बनाने के लिए जन माध्यमों से संघर्ष करना पड़ा । जैसे रेडियो, टेलीविजन, फिल्म । परन्तु समाचारपत्र व मैगज़ीन अपना स्थान बनाने में सफल रहे ।
मैगजीन जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में से एक है । मैगजीन की संख्या, सामग्री की प्रकृति, उपयोगिता आदि इसे एक राज्य से दूसरे राज्य तक फैलाया गया । इन मैगजीनों को ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनैतिक आधार पर भी बांटा गया ।
साधारणत: मैगज़ीन जानकारी, विचारधारा और व्यवहार को फैलाने में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है । यह जहां हमें जानकारी प्रदान करती है वहीं दूसरी तरफ शिक्षा व मनोरंजन को भी पेश करते हुए पाठकों की रूचि का भी ध्यान रखती है ।
रेडियो
भारत में रेडियो का समय 1923 में ब्रिटिश उपनिवेशवाद से शुरू हुआ । स्वतंत्रता के समय बड़े महानगरों में छ: रेडियो स्टेशन थे । सन् 2002 तक यह परिदृश्य इतना बदला की भारत के 2/3 घरों तक अर्थात् 110 मिलियम पारों तक इसकी पहुंच हो गई । भारतीय स्थितियों में रेडियो एक प्रभावशाली माध्यम सिद्ध हुआ । यह असाक्षर लोगों तक भी पहुंचा। टी.वी. एवं फिल्म से सस्ता होने के कारण भी यह लोकप्रिय हुआ । स्थानीय रेडियो स्टेशन भी महत्वूपर्ण साबित हुआ ।
रेडियो पर समाचार तेज गति से चलते हैं। अभिप्राय: है कि श्रव्य माध्यम होने के कारण रेडियो सूचना तुरन्त पहुंचा सकते हैं कहीं पर आकस्मिक कोई घटना घटी संवाददाता ने फोन से स्थानीय केन्द्र को खबर भेजी जहां से तुरंत दिल्ली के न्यूज रूप में खबर पहुंच गई और सारे देश ने न्यूज को जान लिया । यह अकसर होता है कि देर रात में हुई घटना 24 घण्टे के अन्दर समाचार पत्रों के माध्यम से हमारे तक पहुंचती हैं । कई बार टी.वी. भी अपने समाचार रेडियो से ग्रहण करता है । अत: तत्परता की दृष्टि से रेडियो का माध्यम अनुपम है।
रेडियो यदि शिक्षा देता है तो शुष्क नहीं बल्कि मनोरंजन के रस में पूर्णता भिगोकर अनेक विधाएं रेडियो के पास हैं। जैसे- नाटक, संगीत आदि । जिनका प्रयोग करके श्रोताओं के मन तक पहुंचा जाता है तथा जो संदेश उनको देना चाहता है उसे उनका अनुभव कराये बिना दे दिया जाता है । इससे जहॉं एक और मनोरंजन होता है वहीं साथ ही मन का अंधकार दूर हो जाता है।
इतनी विशेषताएं होते हुए भी रेडियो की कुछ सीमाएं हैं इसका दृष्टिहीन होना । यही कारण है कि टी.वी. के आ जाने से रेडियो के श्रोताओं की संख्या में कमी आ गई है और दृश्य का प्रलोभन उन्हें अपनी ओर ले गया । दूसरी सीमा श्रोता और प्रसारण कर्त्ता के बीच दीवार जो सदा बनी रहती है और उसका फीडबैक बहुत ही कम मिल पाता है । इसमें सुधार करने की गुंजाइस कम ही रह जाती है । रेडियो कुछ दिखा नहीं सकता, बल्कि सुना सकता है । समाचार पत्र की सूचना शिक्षा तथा मनोरंजन के उद्देश्य से बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय का लक्ष्य रखते हुए आकाशवाणी ने दशकों का लम्बा सफर तय कर लिया है।
इतनी विशेषताएं होते हुए भी रेडियो की कुछ सीमाएं हैं इसका दृष्टिहीन होना । यही कारण है कि टी.वी. के आ जाने से रेडियो के श्रोताओं की संख्या में कमी आ गई है और दृश्य का प्रलोभन उन्हें अपनी ओर ले गया । दूसरी सीमा श्रोता और प्रसारण कर्त्ता के बीच दीवार जो सदा बनी रहती है और उसका फीडबैक बहुत ही कम मिल पाता है । इसमें सुधार करने की गुंजाइस कम ही रह जाती है । रेडियो कुछ दिखा नहीं सकता, बल्कि सुना सकता है । समाचार पत्र की सूचना शिक्षा तथा मनोरंजन के उद्देश्य से बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय का लक्ष्य रखते हुए आकाशवाणी ने दशकों का लम्बा सफर तय कर लिया है।
टेलीविजन
सिनेमा
मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं एवं अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने वाजा सिनेमा एक ऐसा माध्यम है जिसमें कल्पना दृश्य, लेखन, मंचनिर्देशन, रूप सज्जा के साथ प्रकाश, इलक्ट्रोन, कार्बोनिक और भौतिक रसायन विज्ञान का अद्भूत मिश्रण है। एक ओर इसमें सृजनात्मकता है तो दूसरी ओर जातिक प्रतिभा । इन दोनों के संगम से एक ऐसा आकर्षण होता है जो न केवल मनोरंजन प्रदान करता है बल्कि ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार करता है सामाजिक कुरीतियों को दूर कर सामाजिक जागृति लाने में योगदान देता है ।
सिनेमा जनसंचार का सशक्त माध्यम है। एक फिल्म एक साथ हजारों व्यक्तियों द्वारा देखी जाती है और अलग-अलग शहरों में जब प्रदर्शित की जाती है तो उसका संदेश लाखों व्यक्तियों तक पहुंचता है । एक शताब्दी पूर्व जिस डवअपदह कैमरे के कारण सिनेमा का आविष्कार हुआ उसमें देखते ही देखते अपने मायावी संसार में सारी दुनियां को जकड़ लिया । पहले सिनेमा मूक था और लगभग तीन दशक बाद सवाक हो गया । पहले वह Black & White था, सदी के मध्य तक आते-आते वह रंगीन हो गया ।
यद्यपि सिनेमा मनोरंजन का साधन रहा तथापि वृत्त चित्रों और न्यूज रिलों के द्वारा वह सूचना व ज्ञान के प्रचार का माध्यम भी बना । टेलीविजन के आगमन से पहले तक सिनेमा ही मध्यवर्ग और निम्नवर्ग का मनोरंजन का संस्ता और लोकप्रिय साधन था । भारत जैसे देश में तो आज भी लोकप्रिय है । टी.वी. कार्यक्रमों में भी इसने महत्वपूर्ण जगह बना ली है हालांकि टी.वी., केबल, वीडियो से इसकी लोकप्रियता का आधात लगा है ।
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इंटरनेट
भारत में इंटरनेट की शुरूआत लगभग 15 वर्ष पहले हुई । सर्वप्रथम सैनिक अनुसंधान नैटवर्क (इआरनेट) ने शैक्षिक और अनुसंधान क्षेत्रों के लिए इसका उपयोग शुरू किया । ईआरनेट भारत सरकार के इलैक्ट्रानिक विभाग तथा यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम का एक संयुक्त उपक्रम था । भारत में इंटरनेट को काफी सफलता मिली और इसने अनेक नोडों का परिचालन शुरू किया । लगभग आठ हजार से अधिक वैज्ञानिकों और तकनीशियनों द्वारा ईआरनेट की सुविधाएं प्राप्त की जाने लगी । एनसीएसटी. मुंबई द्वारा अंतर्राष्ट्रीय संपर्क प्राप्त किया जाने लगा ।
इंटरनेट की कार्य-प्रणाली पर भी चर्चा करना यहां अप्रासंगिक न होगा । इंटरनेट पर कोई भी सूचना छोटे-छोटे भागों में विभाजित होकर गतिशील होती है। सर्वर सूचना को निश्चित आकार में विभाजित करके ग्राहक के पास ले जाता है। जब ग्राहक के कम्प्यूटर के पास सभी टुकड़े पहुॅंच जाते हैं तो वह उन्हें एकत्र करके एक स्थान पर प्रस्तुत कर देता है । ई-मेल के संदर्भ में सर्वर एक स्थनीय डाकघर की तरह काम करता है जो विभिन्न स्थानों से आई डाक को उसके पते पर पहुॅंचाने की व्यवस्था करता है । टुकड़ों को जोड़ने का जो कार्य होता है उसकी प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले नियमो को ट्रांसमिशन प्रोटोकॉल कहलाते हैं ।
संक्षेप में ई-मेल का अर्थ है किसी भी संदेश का एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर हस्तांतरण । इंटरनेट का मुख्य कार्य है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना । वास्तव में वह सूचनाओं का समुद्र है । यह ऐसा आकाश है जो असीम है । इंटरनेट इस ब्रह्माण्ड में उपस्थित लगभग समस्त विषयों पर जानकारी समेटे हुए है
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जनसंचार माध्यम और हिंदी by Dr. Salunkhe Manisha Namdeo is licensed under a Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 International License.
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