तिरस्कार - राजेंद्र श्रीवास्तव

 तिरस्कार

राजेंद्र श्रीवास्तव

सारांश :-

राजेंद्र श्रीवास्तव की तिरस्कार कहानी वृद्ध विमर्श पर आधारित है| इस कहानी की प्रमुख पात्र सावित्री बुअपने जवान बेटे राकेश की स्टेशन पर उसे ले जाने के लिए आने की राह देखती रहती है| शादी के पश्चात उसका बेटा न उसे मिलने आता है न ही अपनी माँ को अपने पास बुलाता है | उसे अपने बेटे पर शर्म आने लगती है सारे गांव वाले उसकी निंदा करते हैं कि बेटे ने उसे न शादी में बुलाया न किसी को पत्रिका दी मां को छोड़कर बेटे ने अपनी पसंद के अनुसार शादी कर ली थी तब से उसे बहुत शर्म लग रही थी वह अपने घर में ही छुपी छुपी बैठी रहती किंतु आज पोते के जन्म पर वह सारी बातें पीछे छोड़ देती है और अपने बेटे से मिलने नागपुर शहर को चली जाती है बेटे को तार भेजती है किंतु जब स्टेशन पर राह देखकर भी बेटा राकेश उसे लेने नहीं आता तब उसे लगता है शायद राकेश को तार नहीं मिली होगी नहीं तो अवश्य वह मुझे लेने आता नहीं तो गाड़ी तो भेजता ! ऐसी बाते सोचकर अपने एकमात्र बेटे राकेश की राह देख है|

अपने बेटे बबुआ के जन्मदिन पर उसका बेटे राकेश ने अपनी मॉ को गाव मे एक नामकरण या छटी से संबधित निमंत्रण पत्रिका भेजी है| पत्रिका अंग्रेजी मे है किंतु सावित्री दुसरो से पूछकर उसका अर्थ समझ लेती है | वह अपने बेटे को मिलने के लिए तरसती है | वह अपने पोते को देखने की आस लगाये रहते है| अपनी बहु मिताली और पुत्र राकेश को मिलना चाहती है|बहु मिताली टैक्स डिपार्टमेंट में बड़ी अफसर है | किंतु उसने अपने बेटे को उसकी पत्नी के बारे में उसकी जाति के बारे में पूछा तक नहीं बेटे ने सिर्फ मां को अपनी पसंद के अनुसार एक महाराष्ट्रीयन लडकी मिताली भंडारकर से शादी कर ली है और वह मेरे औफ़िस में काम करती है | यह बात पोस्ट कार्ड द्वारा लिखकर भेजी हुई है पर मां उसे बड़े दिल से क्षमा कर देती है| 

अपने संदूक मे रखी हुई तोले भर सोने की करधनी को अपने पति की मृत्यु के बाद उसने  बचाकर रखी थी वही एक मात्र निशाणी बेचकर बाबुके लिये वस्त्र खरीती है| असली घी में बनाये मोतियों के लड्डू पुरे गॉव में बाँटती है| पुरे गाव मे मिठाईया बाटती है और नागपूर मे शहर जाने की तैयारी करती है |बबुवा के लिए गहने खरीदती है और लोगों को पूछ कर नागपूर का तिकीट निकालती है और ट्रेन से मिलने चली जाती है | क्या अपना बेटा उसे लेने स्टेशन पर आयेगा बहुत देर से वह उसकी राह देखती है पर उसे मिलने तथा लेने के लिए कोई नही आता तो वह  समजती है शायद उसे कोई काम हुआ होगा इसलिये रिक्षा से पता पूछते पुछते वह अपने बेटे के घर पहुच जाती है |

हां धूमधाम से बेटे का कार्यक्रम चल रहा था| पूरा घर लाइटिंग से सजाया हुआ है एक के बाद एक गाडीयों का ताता बाहर लगा हुआ है |बगीचे में विभिन्न फुल थे मखमली घास थी पानी के फव्वारे के चारो ओर लाल नीली रोशनी थी | हर व्यक्ती पूछकर अंदर जा रहा है उसे लगता है की अपना बेटा कितना बडा हुआ है| अंदर बडे बडे परदे कालीन बिछाये हुये है|वह अंदर जाना चाहती है तब दरबान उसे असंख्य प्रश्न पूछता है आप कौन हो ?कार्ड कहा से मिला ?अंदर किससे मिलना है ?बुआ का दर्द इतने दूर प्रवास करने से बढ़ रहा था| सन्दुक उठाते पीठ में दर्द शुरू हुआ |दरबान व्यक्ती उसे टोकता है उसके हाथ में निमंत्रण पत्र देखकर अपने बडे साहब को वह फोन करता है| तब माँ को लगता है कि इस नौकर को मालूम नही की मै इसके साहब की माँ हु |राकेश से कहकर मै इस नोकर को निकल दु किंतु फिर सोचती है वह तो अपना काम कर रहा है नही तो इतने बढ़े कार्यक्रम में कोई ऐसे ही बिना जान पहचान का आ जाएगा यह तो प्रामाणिक अपना फर्ज कर रहा है | वह इस खयाल में है की उसका अपना बेटा अभी उसे मिलने आ रहा है दरबान व्यक्ती उसे कहता है यही खड़ी रह माँ तुमको लेने आदमी भेज रहे है |घर का नौकर आकर माँ को अंदर पिछले रस्ते से ले जाता है |

इतना बड़ा कार्यक्रम रखा है हम तो घरवाले है राकेश किसे किसे देखेगा ऐसा सोचकर वह अपने मन को समजाती है |वह भीतर गयी राकेश फोन पर गुस्से से अंग्रेजी में डाट रहा था |मिताली बगल में ही खड़ी थी बुआ को देखते ही उसकी त्योरियाँ चढ़ गयी कौन है ?अंदर कैसी आई ?तभी राकेश ने कहा कि ये मेरी माँ है| मेहमान आ रहे थे उसका बेटा तथा बहु उसे गुस्से से कहते है यहाँ हॉल में आने की क्या जरूरत थी? उसका बेटा कहता है की माँ तुझे इसी वक्त आना था कार्यक्रम होने के पश्चात तुम आती ? तुझे गाव मिलने मै ही आ जाता बच्चा थोड़े ही भागा जा रहा था | मिताली स्पष्ट शब्दों में कहती है की बच्चे को मत छुना तो दूर उसके पास भी जाओ तो उसे इन्फेक्शन हो जाएगा |सावित्री बुआ दिन भर प्रवास करके थक चुकी है उसके हाथ में उसका पुराना संदूक है जिसके बोतले वथक गयी थी | मेहमान के आते ही राकेश ने माँ को कमरे में धक्का देकर धकेल दिया और मिताली ने पर्दे खीच लिये बाहर न आने के लिए कहा |जिस कमरे मे वह रुकी थी वहा बैठने तक जगह भी नही थी वहा खडी रहकर वह उब जाती है |

आखिर कमिश्नर साहब आ जाते है मिताली बडे घर की बेटी है| उसके पिताजी तथा अनेक मंत्री उस कार्यक्रम मे शामिल है |सावित्री बुवा को बेटे तथा बहु के तेवर देख कर सारी बाते समझ मे आ जाती है| उसे बहुत दुख होता है |आखिर खडे रहकर रहकर वह थकी उसने सुबह से कुछ खाया पिया नही था| घर आने पर भी बेटे तथा बहू ने उसे न खाने पीने के लिए पूछा नही उसका आदर सत्कार किया| भी अकस्मात उसके हाथो से संदूक नीचे गिर जाती है और परदा खीच लिया जाता है और सभी लोगों का ध्यान सामने बुवा पर जाता है सभी लोग पुछते है राकेश साहेब यहा औरत कौन है ?तब राकेश कहता है कि ये मेरी माँ है किंतु सावित्री बुवा को इतना गुस्सा आता है कि वह जोर से चिल्लाती है मै इसकी माँ नही हूं और न ही वह मेरा बेटा है | मां और बेटे के पवित्र रिश्ते से लेकर उसे शर्म आने लगती है| राकेश में इतनी हिम्मत नही रही कि वह माँ से आखें मिलाकर बात कर सके |सावित्री ने अपना सन्दुक उठाया और लम्बा रास्ता पार कर बाहर जाने लगी |उनकी चाल में हिम्मत थी लड्खडाह्त नही थी |

  लेखक इस कहानी के माध्यम से यह कहना चाहते हैं कि आजकल के बेटे तथा बहू बड़े होने पर अधिक पैसा कमाने पर अपने माँ-बाप को भूल जाते है| उसे अपने माता-पिता की शर्म आने लगती है| वह अपने मां-बाप की इज्जत नहीं करते |उन्हें अपने साथ नही रखते हैं | उनका ख्याल नही करते हैं| आजकल के बच्चों को वर्तमान युग में अपने माता-पिता के प्रति कोई प्रतिष्ठा नहीं रही|इसीलिए आज वृद्ध माता-पिता अपने बच्चों का तिरस्कार करते हैं लेखक राजेंद्र श्रीवास्तव ने दिया हुआ इस कहानी का शीर्षक सही दृष्टि से सार्थ दिखाई देता है|सावित्री बुआ अपने एकमात्र बेटे के लिए पति के देहांत के बाद उसे पाल पोस कर बड़ी करती है उसकी शिक्षा के लिए पूरी जायजा बेच देती है अपने गहने तो उसके पास नहीं रहे किंतु अपने मृत पति की एकमात्र निशानी करधनी संदूक में बची हुई थी वह बेचकर वह अपने बेटे को बहू को पोते को मिलने इतने दूर अपने गांव से शहर चली जाती है किंतु उसे ऐसा लगता है कि द्वार पर देखते ही बेटा कितना प्रसन्न होगा उसकी बहू मिताली जिसका नाम इतना अच्छा है उसका स्वभाव भी उतना ही अच्छा होगा किंतु उसे ना आदर सत्कार मिलता है नही प्रतिष्ठा| 

 इस कहानी के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि आज समाज में वृद्धाश्रम की आवश्यकता क्यों है ? क्योंकि बेटे अपने माता पिता को बड़े होने पर संभालने के लिए तैयार नहीं होते वह अपने माता-पिता का कष्ट भूल जाते हैं |इसीलिए आज वृद्धआश्रम में वृद्धों की संख्या बढ़ती जा रही है|आज माँ-बाप अपने बच्चे के सो गुनाहों को माफ कर देते हैं किंतु जब यह गुनाह कम नहीं होते तो अवश्य एक दिन अपने बेटे बच्चों का वह तिरस्कार करते हैं और मां-बाप के रिश्ते को ही ठुकराते हैं |माँ-बेटे का पवित्र रिश्ता आज कम होता हुआ में दिखाई दे रहा है |आज स्वार्थी प्रेम में अंधे हुए बच्चे अपने माता-पिता के उपकारों को भूल गए हैं| लेखक आज की नई पीढ़ी को अपने माता-पिता की इज्जत करने के लिए प्रेरित करते हैं |हिंदी साहित्य में विविध विमर्श है उनमें से यह वृद्ध विमर्श हमें अनोखे जीवन दर्शन के और हमे विचार विमर्श करने के लिए प्रेरित करता है|



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