महादेवी के काव्य में विरह भाव
महादेवी के काव्य में विरह भाव
प्रा.डॉ. साळुंखे मनिषा नामदेव
शोधसार संक्षेप :-
प्रत्येक युग के साहित्य में उस युग की परिस्थितियाँ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप में काम करती रहती है| छायावाद विशेष प्रकार की भाव पद्धति है| छायावादी काव्यचेतना में भारतीय एवं पाश्चात्य प्रवृत्तियों का समन्वित रुप है| पंत, निराला, प्रसाद के पश्चात छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का नाम आदर के साथ लिया जाता है| छायावादी काव्य को संवारने में महादेवी का बहुत बडा हाथ है| ह्रदय अनुभूतियों और सूक्ष्मतम् भावनाओं की अभिव्यक्ति सफलता के साथ महादेवी ने की है| महादेवी के काव्य की विशेषता वेदना है| वे वेदना को अपने प्रियतम की देन समझकर उसका पोषण बडी सावधानी से करती है| विरह वेदना की अग्नि में जितना अधिक जलती है| अपने को उतना अधिक ही वे अपने को प्रियतम के निकट समझती है| दु:खी व्यक्ति का ह्रदय अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण हो जाता है और इसीलिए महादेवी के सारा संसार अपना सा लगता है| इसी दु:ख की वजह से अज्ञान सत्ता की ओर उन्मुख हुई है| इसी सत्ता को उन्होंने प्रियतम के रुप में स्वीकार किया है| महादेवी के काव्य में तन्मयता, अनुभूति, की तीव्रता तथा माधुर्यभाव मिलता है|
प्रस्तावना :-
वेदना एवं करुणा का प्राधान्य छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है| हर्ष-शोक, हास-रुदन, जन्म-मरण, विरह-मिलन के भावों से धीरे मानव जीवन को देखकर कवि-ह्रदय वेदना तथा करूणा से भर जाता है| ह्रदयगत भावों की अपूर्णता सौंदर्य की नश्वरता मानवी दुर्बलता के कारण कवि के काव्य में वेदना एवं करुणा पाई जाती है| महादेवी के काव्य में भावनात्मक रहस्यानुभूति पायी जाती है| वे उस अज्ञात प्रियतम को पाने के लिए निरंतर बैचेन है उनके लिए तो पीडा बहुत ही अधिक स्पृहणीय है|
पर शेष नही होगी यह मेरे प्राणों की क्रीडा
तुमको पीडा में ढूँढा तुममें ढूँढूंगी पीडा |
महादेवी की विरहानूभूति किसी लौकिक प्रिय के प्रति न होकर उस अज्ञात प्रियतम के प्रति हैं |
प्रस्तुत शोधनिबंध के उद्देश है -
1) छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा के काव्य की जानकारी लेना |
2) महादेवी के काव्य में विरह भाव को जानना |
3) महादेवी के काव्यभाषा तथा शैली की जानकारी लेना |
प्रस्तुत शोधनिबंध के लिए ग्रंथालयीन पत्र पत्रिकाएँ, संदर्भ ग्रंथ साहित्य, वृत्तपत्रिय लेख तथा समीक्षात्मक ग्रंथों का आधार लिया गया है|
वेदना भाव महादेवी की कविता का धर्म बन गया है| महादेवी को आधुनिक काल की मीरा कहा जाता है| मीरा में जो तन्मयता है वही महादेवी में पायी जाता है| इसीलिए कुछ आलोचक उनके माधुर्य भाव को मीरा की भाँति माधुर्य भावमुलक रहस्य वाद से
जोडते है| महादेवी के काव्य में दु:ख की व्यापकता है और उन्हें उसकी प्रतीती होती है अत: वे निरंतर दु:खी रही है| दु:ख उनकी कविता में समा गया है| महादेवी के काव्य में जिज्ञासा, साधना और मिलन का आनंद की स्थितियाँ पायी जाती हैं|
वे उस अज्ञात सत्ता के साक्षात्कार के लिए सतत प्रयत्नशील है इसीलिए रात-दिन दीपक की तरह जलती रहती है|
" मधुर मधुर मेरे दीपक जल,
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर| "
छायावादी कवि की यह विशेषता है कि वह अपने दु:ख वियोग प्रेम की कहानी तो कहता है पर उसमें इतना साहस नहीं की वह सामने आ कर अपने प्रेम के आलंबन का नाम बता दे| महादेवी भी इसका अपवाद नही है| कोई नहीं कह सकता कि वह निठूर व्यक्ति कौन छबी देखी हो| उनका स्वप्न स्वप्न ही रहा| न जाने कितने युग बीत गये कवियित्री को आँसू बहाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही न रहा|
" उस सोने के सपने को, देखे कितने युग बीते,
आँखो के कोष हुए है, मोती बरसा कर रीते| "
महादेवी का एकाकी जीवन ही उनके वेदना भाव का मूल प्रेरक तत्व है| उन्हें दुख किसी अभाव के कारण मिला हैं| किसी प्रिय वस्तू के अभाव में कवि खुद ' नीर भरी दु:ख की बदली ' बन गयी| विफल प्रेमभाव उनकी कविता में सर्वत्र पाया जाता है| महादेवी के वियोग सागर को देखकर सारा विश्व वेदनामय प्रतीत होता हैं| महादेवी का प्रियतम अज्ञात है| इसमें अनुभूति की प्रधानता है| ह्रदय तत्व तथा चिंतन पाया जाता है| महादेवी तो अपना सुनापन बिखरा देती है|
'अपने इस सुनेपन की मैं हूँ रानी मतवाली,
प्राणों का दीप जलाकर करती रहती दीवाली| '
कवयित्री महादेवी विरह की पथिक बनकर निरंतर चलना चाहती है| उनका विरहभाव मार्मिकता के साथ जीवन की सार्थकता का अनुभव कराता है| उनके लिए इतना ही काफी है कि उनके ह्रदय में प्रियतम का वास है| उसे और कोई अपेक्षा नहीं हैं| तन के पदों में रहना ही उसे अच्छा लगता है |
' हे नभ की दिपावलीयों, तुम पल भर में छिप जाना,
मेरे प्रियतम को भाता है, तम के पदों में आना| '
कवि दुख के रुप में ही प्रियतम के लिए अपना जीवनदीप निरंतर जलना या तप से संघर्ष करना चाहती है| वेदना उन्हें इतनी प्रिय है कि वे उसका साथ नहीं छोडना चाहती| इसी वेदना के माध्यम से उसे सर्व शक्तिमान चेतनामय ईश्वर का दर्शन किया है|
विरह की तीव्र अनुभूति के कारण महादेवी के ह्रदय में अपार करुणा दिखाई पडती है | करुणा का भाव कवयित्री महादेवी के अनुसार अत्यंत पवित्र हैं| उसकी स्पर्श छाया सें दु:ख निखर उठता है| उनका ह्रदय विरहमुक्त होना नहीं चाहता बल्कि वहीं जीवन का सार तथा अभिलाषा है|
'' शून्य मेरा जन्म था अवसान है मुझको सबेरा
प्राण आकुल के लिए संगी मिला केवल अंधेरा
मिलन का मत नाम ले मैं विरह मे चिर हूँ | ''
महादेवी के ह्रदय में कोमल भावनाओं के साथ साथ नारी ह्रदय की स्वाभाविक सात्विकता समाहित है | उनकी प्रेम वेदना में न द्वेष है, न घृणा, न कठुता, न प्रतिकार सिर्फ वेदना है और समस्त मानव जाति का असीम शोक उस वेदना में समाया हुआ हैं| उनका भाव वियोग श्रृंगार से संबंधित है| वियोग की सभी दशाएँ उनके काव्य में समाई है| अभिलाषा, चिंता, स्मृति, गुणकथन, उद्देश, प्रलाप, व्याधि जडता और मरण सभी दशाओं का वर्णन उनके काव्य में पाया जाता है|
छायावादी युग व्यक्ति प्रधान युग है| इसमें कवि के व्यक्तिगत सुखदु:ख आत्मभिव्यक्ति के लिए प्रस्फुटीत हुए है| महादेवी का व्यक्तिगत दु:ख लोकगत होकर करुण रुप में परिणत हो गया है| वेदना एक भाव है जो आवश्यक सामग्री को उपलब्ध् कर रस रुप में परिणत हुआ करता है| महादेवी के प्रणय को पूर्वराग में समाविष्ट किया जा सकता है| मरण की दशा की व्यंजना की है|
''नहीं अब गाया जाता देव
थकी उंगली है टूटे तार
विश्व वीणा में अपनी आज
मिला लो यह अस्फुट झंकार | ''
महादेवी वेदना की साम्राज्ञी है| उनकी विरहानुभूति लौकिक न होकर अलौकिक अधिक है| महादेवी का काव्य रीतिकाव्य है | उनमें रागात्मकता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, शैलीगत सुकूमारता पायी जाती है| उनकी भक्ति रागानुराग भक्ति है| उनके काव्य में भक्ति, रीति, प्रिती के दर्शन होते है| सात्विक भावों में प्रधान आश्रु, है तो रोमांच, कम्प वैवर्ण्य भावों का समावेश है| रसनिष्पत्ति के सभी उपकरण विद्यमान है| उनके काव्य में बिम्बों का प्रयोग से सात्विकता पायी जाती है| अपनी पीडा की अभिव्यक्ति वे बरसती हुई बदली के बिम्ब से करती है -
'' मैं नीर भरी दु:ख की बदली
परिचय इतना इतिहास यही
उमडी कल थी मिट आज चली| "
महादेवी के भाव और कला दोनों ही एक से सबल एवं समृध्द है| भाषा परिष्कृत सरस एवं कोमल हैं| महादेवी काव्य में अभिधामूलक प्रयोग कम मिलते है और लाक्षणिक प्रयोग अधिक है| तन्मयता, अनुभूति की तीव्रता तथा माधुर्य प्रमुख विशेषताएँ है|
महादेवी प्रणय की एकांत साधिका है| उनकी यह प्रणयभावना आध्यात्मिक है एसीलिए लौकिक प्रणय भावना की वासना स्थूलता मॉसलता से दूर है| उनका प्रणय दु:ख प्रधान हैं| उनके काव्य में आरंभ से विस्मय जिज्ञासा व्यथा और आध्यात्मिकता के भाव मिलते है| वे आरंभ से अंत तक अपने रहस्यमय प्रियतम की एकांकिनी विरहिणी बनी रही है| अपने इसी भावनाओं की आँख मिचौनी वे खेलती रही है| इसी वजह से उन्हे आधुनिक ' मीरा ' कहा जाता है| महादेवी के सभी गीतों में अनुभूति और विचार के धरातल पर एकान्विती मिलती है| उनका काव्य अनुपम सौंदर्य से मंडित है |
निष्कर्षत :-
महादेवी की विरह वेदना चिंतन का विषय रही है| उनको यश के शिखर पर पहूँचाने मे सक्षम है| उन्हे जन्म-मरण का कोई भय नहीं है| उनकी कविता में दर्शन चित्रकला, रस, संगती, गीतितत्व आदि का समावेश है| उन्होंने खुद कहा है कि - ' वेदना को दुसरे के निकट संवेदनीय बनाने के लिए अपने ह्रदय की अतल गहराई की अनुभूति आवश्यक है और उसे व्यापकता देने के लिए जीवन की एकता की भावना उनके अनुभूति पक्ष पक्ष पर बल देती है और उनकी कविता में उसका अभाव नही है| महादेवी छायावादी काव्य में वेदना भाव की साम्राज्ञी है और उनका यह भाव लोक भी आलिंगित करके सार्वजनिक बन गया है| दु:ख के दोनों तत्व स्वगत वेदना और करुणा इनके काव्य में प्रस्फुटित हुए है| महादेवी का काव्य अनुपम सौंदर्य से मंडित है| भाषा संस्कृत, गार्भित, मधुर कोमल है| भाषा और भाव में पूर्ण सामंजस्य है| शैली प्रौढ है| अमूर्त वस्तुओं का मूर्तिकरण भावों और प्राकृतिक रुपों का मानवीकरण किया गया है| महादेवी प्रतीकों के माध्यम सें अपनी अनुभूतियों का प्रकाशन करती है|
संदर्भ ग्रंथ :-
1) हिंदी साहित्य युग और प्रवृत्तियाँ - डॉ. शिवकुमार शर्मा
2) साहित्यिक निबंध - डॉ. शान्ति स्वरुप गुप्त
3) हिंदी के आधुनिक प्रतिनिधि कवि - प्रो. सुरेश अग्रवाल
4) हिंदी साहित्य का आधुनिक काल - डॉ. श्रीनिवास शर्मा
5) प्रतियोगिता साहित्य सीरीज - डॉ. अशोक तिवारी
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