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शकुंतिका - भगवानदास मोरवाल

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  शकुंतिका  - भगवनदास मोरवाल     भगवनदास मोरवाल का जन्म 23 जनवरी 1960 को नगीना, मेवात में हुआ । आप ने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की । पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया । आप के अभी तक प्रकाशित उपन्यास हैं काला पहाड़ (1999), बाबल तेरा देस में (2004), रेत (2008), नरक मसीहा (2014), हलाला (2015), सुर बंजारन (2017), वंचना (2019) तथा शकुंतिका (2020) इनके आतिरिक्त चार कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह और कई संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आप के लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएं प्रमुखता से उभर कर सामने आती हैं। आप अपनी रचना शीलता के लिए कई सम्मानों से विभूषित हो चुके हैं ।                शकुंतिका आप का नवीनतम उपन्यास है । उपन्यास का कथानक सपाट और भाषा सहज – सरल है । यह छोटा सा उपन्यास भारतीय समाज की उस धारणा में आये बदलाव को रेखांकित करता है जो लड़कियों को लड़कों से कमतर आँकती रही है । लेकिन जिस बदलाव को लेखक दिखा रहा है और जितनी सहजता से चित्रित कर रहा है वह भारत के समाज का कितना वास्तविक चित्र है, यह विचारणीय है ।                 “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ” जैस

'कष्टों से भागना कायरता है' - भगत सिंह का सुखदेव के नाम पत्र

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  कष्टों से भागना कायरता है (भगत सिंह सुखदेव के नाम पत्र) भगत सिंह का परिचय -        भगत सिंह (जन्म: 28 सितम्बर 1907, वीरगति: 23 मार्च 1931) भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। प्रस्तावना         भगत सिंह लाहौर के नेशनल कॉलेज के छात्र थे। एक सुंदर-सी लड़की आते जाते उन्हें देखकर मुस्कुरा देती थी और सिर्फ भगत सिंह की वजह से वह भी क्रांतिकारी दल के करीब आ गयी। जब असेंबली में बम फेंकने की योजना बन रही थी तो भगत सिंह को दल की जरूरत बताकर साथियों ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौपने से इंकार कर दिया। भगत सिंह के अंतरंग मित्र सुखदेव ने उन्हें ताना मारा कि तुम मरने से डरते हो और ऐसा उस लड़की की वजह से है। इस आरोप से भगत सिंह का हृदय रो उठा और उन्होंने दोबारा दल की मीटिंग बुलाई और असेंबली में बम फेंकने का जिम्मा जोर देकर अपने नाम करवाया। आठ अप्रैल, 1929 को असेंबली में बम फेंकने से पहले सम्भवतः 5 अप्रैल को दिल्ली के सीताराम बाजार के

रहीम के दोहे

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  रहीम के दोहे  B.A. I 

पत्थर की बेंच -चन्द्रकान्त देवताले

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  पत्थर की बेंच  ~ चन्द्रकान्त देवताले पत्थर की बेंच जिस पर रोता हुआ बच्चा बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है   जिस पर एक थका युवक अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है जिस पर हाथों से आंखें ढांप एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है जिस पर वे दोनों ज़िंदगी के सपने बुन रहे हैं पत्थर की बेंच जिस पर अंकित है आंसू, थकान विश्राम और प्रेम की स्मृतियां इस पत्थर की बेंच के लिए भी शुरू हो सकता है किसी दिन हत्याओं का सिलसिला इसे उखाड़ कर ले जाया अथवा तोड़ा भी जा सकता है पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा   इस पत्थर की बेंच पर!  

मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में चित्रित स्त्री विमर्श

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  "मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में चित्रित स्त्री विमर्श " - डॉ. मनिषा साळुंखे   Maitreyi Pushpa (©amarujala.com) भारतीय समाज में नारी शुरू से ही साहित्य का विषय रही है। हिंदी साहित्य सृजन में विभिन्न लेखिकाओं ने अपना योगदान दिया है। स्वातंत्र्योत्तर कालीन बदलती सामाजिक तथा राजनैतिक स्थितियों ने नारी की चिंतन में अपूर्व परिवर्तन किया। पुरुष प्रधान समाज में नारी की स्थिति को दर्शाने के प्रयास हिंदी कहानियों में विविध लेखिकाओं ने प्रस्तुत किए हैं। आठवें दशक में अनेक महिला लेखिकाओं ने स्त्री विमर्श को अपनी रचनाओं में उभारने का प्रयास किया। उषा प्रियंवदा, मन्नू भंडारी, चित्रा मुद्गल, कृष्णा सोबती तथा मैत्रेयी पुष्पा की रचनाओं ने सभी का ध्यान आकृष्ट किया है। आज भी समाज में लड़का तथा लड़की में भेदभाव किया जाता है। पुत्र को वंश का कुलदीपक माना जाता है 'पुत्र हुआ ऐसा, जैसा त्रिलोकी झेंडा ऐसा मानने वाला हमारा समाज स्त्री के साथ अन्याय करता है पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत लड़की परिवार का नाम रोशन करती है। वृद्धावस्था में माता-पिता की सेवा सुश्रुषा करती है किंतु लड़का अपनी शादी होने पर अपने ह

हिंदी पखवाड़ा संपन्नता समारोह 2022-23

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हिंदी पखवाड़ा  संपन्नता समारोह   2022-23 कला और वाणिज्य महाविद्यालय माढा के हिंदी विभाग के सहाय्यक प्रा.कदम एन बी  सर दि. 1 4 / 0 9 / 20 22 मा ढा तालुका शिक्षण प्रसारक मंडळ संचलित के   एन. भिसे आर्ट्स, कॉमर्स अँण्ड विनायकराव पाटील सायन्स कॉलेज विद्यानगर, भोसरे के हिंदी विभाग के अंतर्गत   दि. 1 सितंबर से 1 4 / 0 9 / 20 22  तक हिंदी पखवाड़ा संपन्नता समारोह   के उपलक्ष्य में ‘ हिंदी  और रोजगार की संभवनाए ’ इस विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया | इस व्याख्यान के लिए प्रमुख अतिथि कला और वाणिज्य महाविद्यालय माढा के हिंदी विभाग के सहाय्यक   प्रा.कदम एन बी  सर उपस्थित थे | इस कार्यक्रम के अध्यक्ष महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पी. एस. कांबळे सर,प्रमुख उपस्थिति माढा तालुका शिक्षण प्रसारक मंडळ   के  अध्यक्ष माजी आमदार माननीय विनायकराव पाटिलजी थे | इस कार्यक्रम का संयोजन हिंदी विभागप्रमुख प्रा. डॉ. मनीषा साळुंखे , सहाय्यक प्राध्यापक रोहिदास रोकड़े सरजी ने किया | इस कार्यक्रम में हिंदी विषय के सभी छात्र उपस्थित थे |   हिंदी पखवाड़ा के अंतर्गत विभिन्न  कार्यक्रम का आयोजन  हिंदी विभाग में  किया

पहेलवान की ढोलक ~ फणीश्वरनाथ रेणु

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   पहेलवान की ढोलक ~ फणीश्वरनाथ रेणु  -:  पहलवान की ढोलक लेखक परिचय :-  जीवन-परिचय-फणीश्वर नाथ रेणु हिंदी-साहित्य के प्रमुख आंचलिक कथाकार माने जाते हैं। इनका जन्म  4  मार्च , 1921  को बिहार प्रांत के पूर्णिया वर्तमान में (अररिया) जिले के औराही हिंगना नामक गाँव में हुआ था। वर्ष  1942  के भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में इन्होंने बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। वर्ष  1950  में नेपाली जनता को राजशाही दमन से मुक्ति दिलाने हेतु इन्होंने भरपूर योगदान दिया। वर्ष  1952-53  में ये बीमार हो गए। इनकी साहित्य साधना तथा राष्ट्रीय भावना देखकर सरकार ने इन्हें पद्मश्री की उपाधि से अलंकृत किया। 11  अप्रैल ,  सन्  1977  को पटना में इनका देहावसान हुआ। रचनाएँ-हिंदी कथा साहित्य में फणीश्वर नाथ रेणु का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंउपन्यास-मैला आँचल ,  परती परिकथा ,  दीर्घतपा ,  कितने चौराहे आदि। कहानी-तीसरी कसम ,  उफ मारे गए गुलफाम ,  पहलवान की ढोलक आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-आंचलिक कथा साहित्य में रेणु जी का महत्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने इस साहित्य में क्रांति उपस्थित की है। फणीश्वर ने