संदेश

बस्स! बहुत हो चुका - ओमप्रकाश वाल्मीकि

चित्र
बस्स ! बहुत हो चुका - ओमप्रकाश वाल्मीकि कविता :- जब भी देखता हूँ मैं झाड़ू या गंदगी से भरी बाल्टी - कनस्तर किसी हाथ में मेरी रगों में दहकने लगते हैं यातनाओं के कई हज़ार वर्ष एक साथ जो फैले हैं इस धरती पर ठंडे रेतकणों की तरह। मेरी हथेलियाँ भीग-भीग जाती हैं पसीने से आँखों में उतर आता है इतिहास का स्याहपन अपनी आत्मघाती कुटिलताओं के साथ। झाड़ू थामे हाथों की सरसराहट साफ़ सुनाई पड़ती है भीड़ के बीच बियाबान जंगल में सनसनाती हवा की तरह। वे तमाम वर्ष वृत्ताकार होकर घूमते हैं करते हैं छलनी लगातार उँगलियों और हथेलियों को नस-नस में समा जाता है ठंडा-ताप। गहरी पथरीली नदी में असंख्य मूक पीड़ाएँ कसमसा रही हैं मुखर होने के लिए रोष से भरी हुईं। बस्स! बहुत हो चुका चुप रहना निरर्थक पड़े पत्थर अब काम आएँगे संतप्त जनों के! 🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟 स्रोत : पुस्तक  : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 67)   संपादक  : कँवल भारती   रचनाकार  : ओमप्रकाश वाल्मीकि   प्रकाशन  : इतिहासबोध प्रकाशन   संस्करण  : 2006  🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟 भावार्थ :- ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित विमर्श के प्रमुख साहित्यिक है ।उन्होंने  स

महाजनी सभ्यता प्रेमचंद का लिखा निबन्ध साहित्य B.A.I Opt Hindi शब्दकलश

महाजनी सभ्यता- प्रेमचंद           महाजनी सभ्यता प्रेमचंद का लिखा एक बहुचर्चित विचारात्मक  निबंध साहित्य हे। पहले यह निबंध महाजनी तहजीब नामक शीर्षक से उर्दू मासिका में प्रसिद्ध हुआ था। इस निबंध के द्वारा प्रेमचंद ने हमारे देश में महाजनी सभ्यता की स्पष्ट रूप से निंदा की है ।।महाजनी सभ्यता से जागीरदारी सभ्यता तथा साम्राज्यवाद तथा मार्क्सवाद का प्रेमचंद जी ने गुणगान किया है। प्रेमचंद लिखते है  जागीरदार प्रजा का  पालन करता था और न्याय शील भी होता था उसमें दोष के साथ गुण भी थे।        महाजनी सभ्यता में सारे कामों की गरज सिर्फ पैसा होती है। महाजनों पूंजी पतियों को ज्यादा से ज्यादा नशा हो इसी दृष्टि से आज दुनिया में महाजनों का राज्य दिखाई देता है और धनी लोगों ने मानव भाव को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है। कुलीनता शराफत गुण कमाल की कसौटी पर पैसा ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जिसके पास पैसा है वह देवता है। साहित्य संगीत और कला धन की देहरी पर माथा टेकने वालों में ही है। डॉक्टर और हकीम बिना इसलिए बात नहीं करते वकील और बैरिस्टर मिनटों के लिए अनेक पैसे तोलते हैं ।पंडित जी पैसे वालों के बिना पैसे क

रेडियो रूपक

रेडियो रूपक ▪️ रेडियो रूपक किसे कहा जाता है उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए ॽ       रेडियो रूपक याने नाटक आता है पर वह नाटक नहीं है दृश्य जगत के रूप में वाचन और संभाषण कला संगीत और कलात्मक प्रस्तुति ध्वनि प्रभाव का ऐसा चित्र उपस्थित किया जाता है जिससे श्रोता के ह्दय में वह समाता चला जाता है ।इसके संवाद सार्थक होते हैं उसे रेडियो रूपक कहा जाता है ।नाटक मंच पर देखा जाता है उसे रेडियो सेट पर सुना जाने लगता है ध्वनि प्रभाव स्वर संगीत और प्रसारण रेडियो रूपक में महत्वपूर्ण है भारतीय नाट्य परंपरा में भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में 10 रूपकों का उल्लेख किया था उनमें से अलग रेडियो रूपक है         भारत विशाल बहू धर्मी बहुभाषी देश है विविधता में एकता इसकी विशेषता है इसमें साहित्य संगीत और कला का महत्वपूर्ण योगदान है रेडियो ने इन तीनों को अपने अनुरूप डालकर भारत के सामाजिक जीवन में सकारात्मक बदल किया है । ‌▪️ गंगा प्रदूषण पर आधारित रूपक को स्पष्ट कीजिएॽ          भारत की संस्कृति की पहचान यह रूपक है ॔प्रतीक्षा है एक भगीरथ की ॓ इस रूपक में गंगा नदी के प्रदूषण का वर्णन किया हुआ है। जिस गंगा को हम

तिरस्कार - राजेंद्र श्रीवास्तव

  तिरस्कार राजेंद्र श्रीवास्तव सारांश :- रा जेंद्र श्रीवास्तव  की तिरस्कार कहानी वृद्ध विमर्श पर आधारित है |  इस   कहानी की प्रमुख पात्र सावित्री बु आ अपने जवान बेटे   राकेश   की स्टेशन पर उसे ले जाने के लिए आने की राह देखती रहती है |  शादी के पश्चात   उसका बेटा न उसे मिलने आता है न   ही अपनी माँ को अपने पास बुलाता है   | उसे अपने बेटे पर शर्म आने लगती है सारे गांव वाले उसकी निंदा करते हैं कि बेटे ने उसे न शादी में बुलाया न किसी को पत्रिका दी मां को छोड़कर बेटे ने अपनी पसंद के अनुसार शादी कर ली थी तब से उसे बहुत शर्म लग रही थी वह अपने घर में ही छुपी छुपी बैठी रहती किंतु आज पोते के जन्म पर वह सारी बातें पीछे छोड़ देती है और अपने बेटे से मिलने नागपुर शहर को चली जाती है बेटे को तार भेजती है किंतु जब स्टेशन पर राह देखकर भी बेटा राकेश उसे ले ने नहीं आता तब उसे लगता है शायद राकेश को तार नहीं मिली होगी नहीं तो अवश्य वह मुझे लेने आता नहीं तो गाड़ी तो भेजता   ! ऐसी बाते सोचकर अपने एकमात्र बेटे राकेश की राह देख  है | अपने बेटे   बबुआ के जन्मदिन पर उसका बे टे राकेश ने अपनी मॉ को गाव मे एक   नामकर