महाजनी सभ्यता प्रेमचंद का लिखा निबन्ध साहित्य B.A.I Opt Hindi शब्दकलश

महाजनी सभ्यता- प्रेमचंद 
         महाजनी सभ्यता प्रेमचंद का लिखा एक बहुचर्चित विचारात्मक  निबंध साहित्य हे। पहले यह निबंध महाजनी तहजीब नामक शीर्षक से उर्दू मासिका में प्रसिद्ध हुआ था। इस निबंध के द्वारा प्रेमचंद ने हमारे देश में महाजनी सभ्यता की स्पष्ट रूप से निंदा की है ।।महाजनी सभ्यता से जागीरदारी सभ्यता तथा साम्राज्यवाद तथा मार्क्सवाद का प्रेमचंद जी ने गुणगान किया है। प्रेमचंद लिखते है  जागीरदार प्रजा का  पालन करता था और न्याय शील भी होता था उसमें दोष के साथ गुण भी थे।
       महाजनी सभ्यता में सारे कामों की गरज सिर्फ पैसा होती है। महाजनों पूंजी पतियों को ज्यादा से ज्यादा नशा हो इसी दृष्टि से आज दुनिया में महाजनों का राज्य दिखाई देता है और धनी लोगों ने मानव भाव को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है। कुलीनता शराफत गुण कमाल की कसौटी पर पैसा ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जिसके पास पैसा है वह देवता है। साहित्य संगीत और कला धन की देहरी पर माथा टेकने वालों में ही है। डॉक्टर और हकीम बिना इसलिए बात नहीं करते वकील और बैरिस्टर मिनटों के लिए अनेक पैसे तोलते हैं ।पंडित जी पैसे वालों के बिना पैसे के गुलाम है ।अखबार में उन्हीं की स्तुति की जाती है आज आदमी के दिलों दिमाग पर पैसों ने कब्जा कर लिया है मनुष्य में दया स्नेहा सच्चाई सौजन्य दिखाई नहीं देता। सबसे बड़ा सदुपयोग पैसे कमाना है डॉक्टर मरीज से कितने भी पैसे वसूल करते हैं। यदि रोगी अपना दुख गाथा सुनाने लगे तो डॉक्टर बिल्कुल ध्यान नहीं देते। पति पत्नी बच्चों से बात करने की फुरसत नहीं है। धनी लोगों ने मनुष्यता और मित्रता को नष्ट कर दिया है।
        अगर कोई आपका दोस्त वकील है किसी मुकदमे में आप फंसे हुए हो और आप उनसे संहिता चाहते हो तो वह बिना फिज लिए साहयता नहीं करता। दूसरा वकील पूरी फीस देने पर आपकी सहायता कर सकता है।। मित्रता मनुष्यता स्नेहा सहानुभूति आज व्यर्थ बनी हुई है। आज शिक्षा के क्षेत्र में भी गुरु छात्रों से फीस वसूल करते हैं ।उन्हें अपने शिष्य से कोई लेना-देना नहीं । सिर्फ एक घंटे में पढ़ाया जाता है छात्रों की समस्याओं की ओर भी ध्यान नहीं देते। आज महाजनी सभ्यता का दूसरा सिद्धांत है  बिजनेस इज बिजनेस अर्थात व्यवसाय व्यवसाय है उसमें भावुकता के लिए गुंजाइश नहीं दिखाई देती है।
          नई सभ्यता ने व्यक्ति स्वतंत्र के पंजे नाखून और दांत तोड़ दिए हैं राज्य में पूंजीपति लाखों मजदूरों का खून पीकर मोटा नहीं हो सकताआज सर्वत्र महाजनी सभ्यता का बोलबाला है यह सभ्यता पूंजीवाद पर आधारित है पैसा ही इस सभ्यता का भगवान है पूंजीवादी सभ्यता को प्रेमचंद ने महाजनी सभ्यता कहां है मानव समाज को दो वर्गों में बांटा है शोषक और शोषित एक और निम्न वर्ग के लोग हैं जिसमें किसान मजदूर दिन है लोग हैं तो दूसरी ओर साहूकार जमींदार महाजन पूंजीपति लोग हैं। इस वर्ग में किसी प्रकार की हमदर्दी नहीं है समस्त दुनिया का हर समाज इस दो वर्गों में विभाजित है।
        प्रेमचंद ने इस सभ्यता को बहुत बुरा बताया है। क्योंकि आज हर व्यक्ति इन लोगों का शिकार करने में लगा हुआ है आज ऐसे व्यक्ति समाज को धोखा देते हैं। मानवता इनमें दिखाई नहीं देती परोपकार सहानुभूति दया जैसी मानवीय भावनाएं इनमें नहीं होती ।व्यक्ति की हैसियत उनके गुणों का आधार केवल पैसा है सारे लोग आज पैसे के पीछे भाग रहे हैं ।।व्यक्ति की हैसियत चाहे वह वकील हो डॉक्टर हो हकीम हो या शिक्षक या नौकरी पेशावर सभी लोग पैसों के गुलाम है।
       पैसों की भूख ने आज मानव मानव के बीच भावनात्मक रिश्ते को खत्म कर दिया है। धन ही हमारी सभ्यता और गुणों का मापदंड है।जिसके पास अधिक धन है वह अधिक गुनी और शरीफ कहलाता है। वही सज्जन है व्यक्ति के पास अवगुण कितने भी हो धन अधिक होने पर बैठक जाते हैं ।इसलिए आज दोषी व्यक्ति जेल के बाहर घूम रहा है और निर्दोष व्यक्ति जेल के अंदर है।
समाचार या मीडिया भी धनी व्यक्तियों का ही गुणगान करते हैं।धन नहीं हो तो संस्कारों को कोई नहीं पूछता इसलिए आज समय को धन माना जाता है।प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य धन कमाना है। किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से लाभ हो तो ही व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से मिलता है जैसे डॉक्टर वकील अध्यापक का समय कीमती है। वह सोच कर बातें करते हैं उनके लिए समय धन है कुछ कमा लेना ही जीवन की सार्थकता है।
          प्रेमचंद की दृष्टि से यह समाज व्यवस्था भावी पीढ़ी के लिए खतरनाक है। कारण महाजनी सभ्यता मानव समाज से मानवता मित्रता प्रेम सहानुभूति ऐसे मानवीय अभाव को दूर ले जा रही है। इसीलिए लेखक कहते हैं धन लिप्सा को इतना ना बढ़ने दिया जाए कि वह मनुष्यता मित्रता स्नेह सहानुभूति सबको निकाल बाहर करें।। बिजनेस इन बिजनेस समय की मांग है।

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